मसीहा लोगों को बपतिस्मा (दीक्षा) देगा

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बाइबल के अनुसार पवित्र आत्मा मसीहा लोगों को बपतिस्मा देगा।

  • और उनसे मिलकर यीशु ने आज्ञा दी कि यरूशलम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझसे सुन चुके हो ।

    ऐपोस्टल्स के कार्य १:४

  • क्योंकि जॉहन (युहन्ना)” ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है, परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्रात्मा से (में) बपतिस्मा पाओगे “Not many days hence ।

    ऐपोस्टल्स के कार्य १:५

और मैंने एक स्वर्ग दूत को जीवते परमेश्वर की मोहर लिये हुए पूरब से ऊपर की ओर आते देखा, उसने उन चारों स्वर्गदूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र की हानि करने का अधिकार दिया गया था, ऊँचे शब्दों से पुकार कर कहा। जब तक हम अपने परमेश्वर के दासों के माथे पर मुहर न लगा दें तब तक पृथ्वी, समुद्र और पेड़ों को हानि न पहुँचाना ।

(७:२ व ३)

— पवित्रात्मा द्वारा लोगों को बपतिस्मा दिये जाने का एक समान संदर्भ है दैवीय प्रकाशन में (७:२ व ३) जहाँ यीशु कहता है

सम्बद्धता:

  • बाइबल के इन दोनों ही संदर्भों से यह स्पष्ट होता है कि पवित्रात्मा या मसीहा लोगों को बपतिस्मा (दीक्षा) देगा और वह ऐसा ईश्वर के दासों के माथे पर मुहर लगाकर करेगा। केवल एक दिव्य गुरू (पवित्रात्मा) जो सर्वोच्च पद का होगा तथा जो स्वयं ईश्वर को जान चुका होगा लोगों को सही बपतिस्मा दे सकता है ठीक उसी ढंग से जैसे यीशु ने कहा था।

  • गुरुदेव सियाग एक ऐसे ही दिव्य गुरू हैं जो कहते हैं कि ईश्वर का साक्षात्कार मनीषी पुस्तकों के पढ़ने या प्रतिभापूर्ण बहस का मामला नहीं है, यह ईश्वर को अनुभव करने का मामला है- आत्मसाक्षात्कार या ईश्वर का साक्षात्कार।

  • गुरुदेव सियाग अपने शिष्यों से एक दैवीय मंत्र के जाप एवं माथे के मध्य में (भोंहो के मध्य के ठीक ऊपर जिसे अक्सर तीसरी आँख कहा जाता है) ध्यान के द्वारा ईश्वर को अनुभव व साक्षात्कार करने को कहते हैं ठीक वैसे ही जैसा यीशु कहता है, “कहते हुए जब तक हम अपने परमेश्वर के दासों के माथे पर मुहर न लगा दें तब तक पृथ्वी, समुद्र और पेड़ों को हानि न पहुँचाना”, माथे का मध्य या तीसरी आँख हिन्दू धर्म के अनुसार चेतना का मुख्य केन्द्र है।

  • आध्यात्मिक गुरुदेव के शक्तिपात (दिव्य आन्तरिक ऊर्जा शक्ति को क्रियाशील करके) या बपतिस्मा के द्वारा एक बार यह केन्द्र क्रियाशील होने पर साधक की दृष्टि अन्दर की ओर मुड़ जाती है और वह ईश्वर का साक्षात्कार करता है।

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