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पुनर्जन्म को प्रमाणित करना अति आवश्यक है।
5 जुलाई 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक
    सनातन धर्म के सर्वोत्तम ग्रंथ गीता में भगवान् ने पुनर्जन्म की स्पष्ट व्याख्या करते हुए कहा है -
    शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः ।
    गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ।। (15:8)

    - भगवान् श्रीकृष्ण

    वायु, गन्ध के स्थान से, जैसे गन्ध ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादिकों का स्वामी जीवात्मा भी जिस पहले शरीर को त्यागता है, उससे मनसहित इन्द्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें जाता है।

  • जब तक हम गीता में वर्णित उपर्युक्त सच्चाई को संसार के सामने प्रमाणित नहीं कर सकेंगे, कोई भी व्यक्ति हमारी बात को क्यों मानेगा? उपर्युक्त सच्चाई को संसार के समाने प्रमाणित करना अतिआवश्यक कार्य है। थोथे नीति के विषय में उपदेश से अब काम नहीं चलेगा। भगवान् की उपर्युक्त व्याख्या के अनुसार जब तक मनुष्य अन्तर्मुखी होकर जीवात्मा से सम्पर्क करने की स्थिति में नहीं पहुँचता है, इसका समाधान असम्भव है। इस पथ में पहले स्थूल शरीर में स्थित, सूक्ष्म शरीर से साक्षात्कार करना पड़ेगा। इसके बाद सूक्ष्म शरीर को भेदकर कारण शरीर से साक्षात्कार करना होगा। फिर ज्यों ही कारण शरीर का भेदन हुआ कि आत्मा से साक्षात्कार हो जायेगा।

  • आत्मा प्रारम्भ से लेकर सभी जन्मों का ज्ञान करवाने में सक्षम है। इसी प्रकार महात्मा बुद्ध को अनेक जन्मों का ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह तो हुआ बीते समय का ज्ञान। परन्तु जीवात्मा परमात्मा का ही अंश है। वह अमर है, उसमें और भगवान में कोई अन्तर नहीं है। अतः संसार में आगे होने वाली बातों का भी ज्ञान होना सम्भव है। हमें वह शक्ति प्राप्त करनी है। अब वह समय दूर नहीं है।

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