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21 वीं शताब्दी के बारे में भारत में इतना शोर क्यों मच रहा है?
24 फरवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

21वीं शताब्दी में भारत की संसार में क्या स्थिति होगी, इसको लेकर सत्ता पक्ष और विरोधी पक्ष में काफी छींटाकसी चल रही है। सभी लोगों का ध्यान मात्र वैज्ञानिक उन्नति पर है। सभी लोग मात्र वैज्ञानिक उपलब्धियों को ही उन्नति का प्रतीक मानते हैं। अगर वैज्ञानिक उपलब्धियाँ ही मात्र संसार की सुख शान्ति का सहारा होतीं तो पश्चिम के देशों में तो इस समय पूर्ण शान्ति होनी चाहिए थी परन्तु वहाँ स्थिति ठीक इसके विपरीत है।

  • लोगों का जीवन इतना अशान्त और तनाव पूर्ण है कि 80-85 प्रतिशत लोगों को सोने के लिए विभिन्न प्रकार के नशे की दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है। जो वस्तु ईश्वर ने बिना किसी भेदभाव के, संसार के सभी प्राणियों को मुफ्त में प्रदान की हुई है, वह भी इन लोगों के नसीब में नहीं लिखी है। इस प्रकार मानसिक शान्ति के अभाव में निरन्तर तनावग्रस्त दिमाग, विभिन्न प्रकार के दुष्कर्म संसार में फैला रहा है। ईश्वर ने जो वैज्ञानिक ज्ञान संसार को दिया है, उसका उपयोग मानव की भलाई के लिए कम और विनाश के लिए अधिक किया जा रहा है।

  • संसार को दो विश्व युद्धों में झोंकने वाला देश जर्मनी आज सबसे अधिक चिन्तित है। उसकी हालत संसार भर से विपरीत है। सारे संसार में जन्म दर बढ़ रही है, परन्तु वहाँ जन्म दर निरन्तर घट रही है। वहाँ के विद्वानों को इस स्थिति से भारी चिन्ता हो रही है। उनका कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो जर्मन खून संसार से खत्म हो जायेगा। यही स्थिति और देशों की है, कहीं भी शान्ति का नामों निशान तक नहीं है।

  • ऐसी स्थिति में हमारे देशवासी अगर मात्र वैज्ञानिक उन्नति को प्रगति का प्रतीक समझें तो यह एक भारी भूल होगी। फिर वह परमसत्ता 21वीं सदी का इतना शोर क्यों मचवा रही है? महर्षि अरविन्द ने कहा था, आजादी लेने के बाद भारत का स्वरूप संसार के सामने कैसा हो? यह अधिक महत्त्वपूर्ण विषय है। अगर भारत अपनी सीमाओं का विस्तार करता हुआ वैज्ञानिक दृष्टि से संसार के अन्य देशों के बराबर खड़ा हो जाय तो संसार में कुछ भी फर्क पड़ने वाला नहीं है, जहाँ इतने देश है एक और जुड़ जाएगा। इस प्रकार भौतिक उन्नति, संसार में शान्ति स्थापित करने में भी सफल नहीं होगी। वैज्ञानिक दृष्टि से द्वापर युग का मानव सर्वोत्तम स्थिति में था। फिर भी महाभारत का युद्ध हुआ और संसार वैज्ञानिकों और वीरों से खाली हो गया। अगर संसार में सच्ची आध्यात्मिक चेतना नहीं आई तो महाभारत के युद्ध में संसार की जो हालत हुई, उससे भिन्न परिणाम की आशा केवल कल्पना है।

  • परन्तु संसार के धार्मिक ग्रन्थ और संतों की भविष्यवाणियाँ संकेत कर रही हैं कि वह परमसत्ता मानव रूप में, संसार में सुख शान्ति स्थापित करने हेतु अवतार ले चुकी है। अपने क्रमिक विकास के साथ वह शक्ति, इस सदी के अन्त तक संसार भर की मानव जाति को अपनी तरफ आकर्षित कर लेगी। मेरी प्रत्यक्षानुभूतियों के अनुसार वह शक्ति सन् 1993 तक भारत में अपना पूरा प्रभाव जमा लेगी। इसके बाद आगे के वर्षों में पूरे संसार में उसका एक छत्र प्रभाव स्थापित हो जायेगा। इस समय संसार में सबसे बड़ा ईसाई धर्म, फिर मुस्लिम धर्म और फिर बौद्धधर्म है।

ईसाई धर्म के प्रवर्तक यीशू ने संसार छोड़ने से पहले ही घोषणा कर दी थी
मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आयेगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा। और वह आकर संसार को पाप, धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर कर देगा। 'पाप' के विषय में इसलिए कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है। मुझे तुम से बहुत सी बातें कहनी है, परन्तु अभी तुम उसे सह नहीं सकोगे। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और आने वाली बातें तुम्हें बताएगा। वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है, इसलिए मैंने कहा कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।

- यीशू

  • इसके अलावा यीशू के अनुयाइयों में से कई और संतों ने भविष्यवाणियां की हैं कि 20वीं सदी के अन्त तक कलीसिया का अस्तित्व मिट जायेगा। यीशु तथा अन्य संतों की भविष्यवाणियों को लेकर ईसाई जगत् में आज खलबली मची हुई है।

  • दबी जुबान से ईसाई धर्म प्रचारक इसे स्वीकार करते हुए कहते हैं- "कुछ विनाश के ऐसे नबी है जो यह भविष्यवाणी करते हैं कि बीसवीं शताब्दी के अन्त तक कलीसिया का अस्तित्व ही मिट जाएगा। एक ऐसे जर्जर वृद्ध व्यक्ति का चित्र है जो कब्र के निकट पहुँच चुका हो, परन्तु परमेश्वर के परिवार के लिए वास्तव में कोई ऐसा खतरा नहीं है। परमेश्वर ने इसलिए अपने एकलौते पुत्र को दे दिया कि हम सब एक रह सकें। उसने अपने परिवार के लिए भारी मूल्य चुकाया है। मैं नहीं मानता कि परमेश्वर उस कार्य को सम्पन्न नहीं करेगा, जो उसने प्रारम्भ किया है।"

  • उपर्युक्त से एक ऐसी झलक नजर आती है कि ईसाई जगत् यीशु (अपने परमात्मा) और अपने ही धर्म के सन्तों की भविष्यवाणियों से अत्यधिक भयभीत है। इस सम्बन्ध में मैंने एक कामकाजी ईसाई महिला से एक दिन 'यूहन्ना' को कही यीशु की बात के बारे में पूछताछ की तो उसने कहा कि मुझे तो इतना ज्ञान नहीं है, मैं आपको हमारे पादरी से मिलाकर मालूम करवा सकती हूँ। इसके बाद उसने कहा कि आजकल प्रार्थना के बाद पादरी साहब हमें मुख्य चर्च से आया आदेश हर इतवार को सुनाते हैं। आदेश कुछ इस प्रकार है: "इस समय ईसाई धर्म बहुत कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है। धर्म पर संकट के बादल मण्डरा रहे हैं। हमारे धर्म पर भारी आक्रमण होने वाला है। अगर आपको ईसाई धर्म या और किसी भी धर्म का धर्मगुरु हमारे धर्म के बारे में कुछ भी उपदेश दे तो आप उसकी बात न सुनो। आप को चर्च के पादरी जो आदेश दें, उसी का पालन करते हुए, इस संकट की घड़ी में अपने धर्म की रक्षा करें।" मैंने उस महिला से पूछा, “क्या आप लोगों को कोई प्रत्यक्ष संकट नजर आ रहा है?” तो उसने उत्तर दिया कि मुझे तो ऐसा नहीं लगता।

  • इसके बाद मुस्लिम धर्म का नम्बर है। इस धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब की भी कलम 14वीं सदी के बाद बन्द हो गई। इस धर्म के अनुयाइयों के अनुसार आगे का समय इस धर्म के अनुकूल नहीं रहेगा। इस प्रकार ये दोनों बड़े धर्म ह्रासोन्मुख हो चले हैं। तीसरा धर्म, बौद्ध धर्म है। इस धर्म की जहाँ उत्पत्ति हुई, वहीं पूर्ण रूप से नष्ट हो चुका है। बौद्ध और जैन धर्म, दोनों निरीश्वरवादी धर्म हैं। ये धर्म मात्र राज्य सत्ता के सहारे पनपे हुए हैं। जब सनातन धर्म रूपी सूर्य उदय होगा तो इन सभी टिमटिमाते हुए सितारों के प्रकाश की ज्योति पूर्ण रूप से समाप्त हो जायेगी। 21 वीं सदी से सनातन धर्म का एक छत्र साम्राज्य संसार में प्रारम्भ हो जायेगा। इस सम्बन्ध में महर्षि अरविन्द ने संसार के सभी संतों से एक कदम आगे बढ़ कर घोषणा की है।

  • श्री अरविन्द ने उस परमसत्ता के अवतरण की स्पष्ट घोषणा करते हुए कहा है
    24 नवम्बर 1926 को श्री कृष्ण का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। श्रीकृष्ण अतिमानसिक प्रकाश नहीं है, श्री कृष्ण के अवतरण का अर्थ है अधिमानसिक देव का अवतरण जो जगत् को अतिमानस और आनन्द के लिए तैयार करता है। श्रीकृष्ण आनन्मदय हैं। वे अतिमानस को अपने आनन्द की ओर उद्बुद्ध करके विकास का समर्थन और संचालन करते हैं।

    - श्री अरविन्द

  • इस परमसत्ता के क्रमिक विकास के साथ संसार में जो परिवर्तन होने वाला है, उसका वर्णन करते हुए श्रीअरविन्द ने कहा है : "एशिया जगत्-हृदय की शान्ति का रखवाला है। योरोप की पैदा की हुई बीमारियों को ठीक करने वाला है। योरोप ने भौतिक विज्ञान, नियंत्रित राजनीति, उद्योग, व्यापार आदि में बहुत प्रगति कर ली है। अब भारत का काम शुरू होता है। उसे इन सब चीजों को अध्यात्म शक्ति के अधीन करके धरती पर स्वर्ग बसाना है।"

  • संसार के सभी धर्मों की घबराहट और सभी धर्मों के धर्माचार्यों की भविष्यवाणियाँ यह दर्शा रहीं है कि संसार में कोई ऐसी आध्यात्मिक शक्ति प्रकट होने वाली है जो संसार भर के मानवों को अपनी तरफ आकर्षित करके उन्हें आनन्द और शान्ति की तरफ उद्बुद्ध करके विकास का समर्थन और संचालन करेगी।

  • अंग्रेजी की कहावत है कि आने वाली घटनाएँ अपनी परछाईं पहले भेज देती हैं। यही कारण है कि भारत में भी 21वीं सदी को लेकर सभी वर्ग के लोग कुछ न कुछ कह रहे हैं। वे खुद नहीं समझ रहे हैं कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। वह परमसत्ता सब को भरमाते हुए अपनी इच्छा के अनुसार चला रही है। इस युग का मानव आर्थिक सत्ता के मद में अपने होश भूल चुका है, जब वह करोड़ों सूर्यों से भी तेज सत्ता, संसार के सामने प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होगी तो सब का मद चूर-चूर हो जायेगा।

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