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भगवान् की माया का खेल बड़ा विचित्र है।
6 सितम्बर 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के माध्यम से, प्रभु जो कुछ करवाने जा रहे हैं, वह भारी अचम्भे की बात है। जो कुछ मेरे माध्यम से होने जा रहा है, उसके बारे में संसार के आम व्यक्ति के सामने अगर मैं बताने लगूं तो मैं निश्चित तौर पर पूर्ण रूप से पागल घोषित कर दिया जाऊँगा। संसार में एक रेगिस्तानी भाग पर एक गरीब की कच्ची झोंपड़ी में पैदा प्राणी संसार में जो कुछ करने जा रहा है, वह ईश्वर का भारी चमत्कार है।

  • सन् 1984 में यूहन्ना का 15:26, 27 तथा 16:7 से 15 का अंश पढ़ने पर मुझे बड़ी जिज्ञासा हुई कि यह मेरे प्रश्न का कैसा उत्तर मिला। पता लगाने पर मुझे मालुम हुआ कि वह अंश तो ईसाइयों की पवित्र धार्मिक पुस्तक ‘बाइबिल’ का अंश था। अनायास मुझे कुछ दिनों बाद बाइबिल का एक भाग The New Testament मिल गया। वह पुस्तक एक हिन्दी अनुवाद थी। मूल भाषा का हिन्दी अनुवाद बहुत गलत अर्थ समझा रहा था। इस पर मैंने वी. के. शर्मा नामक रेलवे अस्पताल, बीकानेर की मैट्रन से मूल भाषा की बाइबिल ली। उसके विशेष दो अंश मैंने मेरी डायरी में लिखे, जो कि मेरे से सम्बन्धित हैं, जिसे परमसत्ता ने मुझे दिखाया और उनकी प्रत्यक्षानुभूति करवाई।

  • St. John16:12 से 15 की सभी बातें जब सच्ची प्रमाणित होने लगी तो मुझे भारी आश्चर्य होने लगा। एक दिन मैंने सोचा इस आनन्द के बारे में बाइबिल में क्या कहा है, तो मुझे प्रेरणा मिली कि St. John 15:11 तथा भजन संहिता 23 : 5 पढूँ। जब मैंने उस अंश को पढ़ा तो भारी अचम्भा हुआ। जो कुछ लिखा था, ठीक वैसा ही आनन्द मेरे द्वारा मेरे शिष्यों में फैल रहा था। इस पर मुझे विचार आया कि मुझे तो आराधना विशेष के कारण ऐसा हो रहा है, परन्तु मुझसे जुड़ने वाले लोगों को ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर मुझे प्रेरितों के काम का 1:5 का अंश दिखाया गया। उसे पढ़ कर, मैं कुछ भी नहीं समझा। विचार आया कि मुझसे सम्बन्धित सभी लोगों को प्रत्यक्षानुभूतियाँ किस कारण से हो रही हैं? इस पर मुझे St. John 3:3 से 8 तक का अंश पढ़ने का आदेश मिला। उसे पढ़ने से, मैं समझा कि यह हिन्दू दर्शन के द्विज बनने के सिद्धान्त की बात है। मेरी आराधना का तरीका तो हिन्द दर्शन के उस सिद्धान्त पर आधारित है कि सारा ब्रह्माण्ड अन्दर है। अतः उस परमसत्ता से सम्पर्क अन्तर्मुखी हुए बिना असम्भव है। इस पर मुझे St. John 2:19 से 21 तथा 2 Corinthians का 6:16 भाग देखने की प्रेरणा मिली।

मुझे उपर्युक्त तथ्यों ने बहुत प्रभावित किया। विचार आया संसार के लोगों ने स्वार्थवश अलग-अलग धर्म और सम्प्रदाय बनाकर उनके ठेकेदार बने बैठे हैं। ईश्वर ने जितने भी संत पैदा किये, वे संसार के सभी प्राणियों के लिए कार्य कर गये हैं। हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी, बौद्ध, जैन, आदि सभी मानवीय बुद्धि का चमत्कार हैं।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • एक दिन विचार आया कि इस समय तो बहुत कम लोगों से सम्पर्क है परन्तु जिस समय संसार के विभिन्न लोगों से सम्पर्क होगा तो फिर कैसी स्थिति होगी? इस पर मुझे प्रेरितों के काम (The Acts of Apostles) 2:14से 18 और 2 : 33 को देखने की प्रेरणा मिली।

  • उपर्युक्त तथ्यों को देख कर मुझे बड़ा अचम्भा हो रहा है। दो हजार वर्ष पहले जो तथ्य एक महान् आत्मा ने बताए, वे सभी मेरे जैसे साधारण व्यक्ति से प्रमाणित होते देख बड़ा अचम्भा हो रहा है। बाइबिल और गीता में लिखी सभी बातें, मैं भौतिक जगत् में प्रमाणित करने की स्थिति में हूँ। अतिशीघ्र सभी तथ्य संसार भर में प्रकट होने वाले हैं।

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