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सत्संग का प्रभाव
25 अप्रेल 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

इस युग में सत्संग को मानव समझ ही नहीं पा रहा है। कई लोग रात भर जागते रह कर भजन कीर्तन करने को सत्संग कहते हैं, कई कथा, उपदेश आदि में सम्मिलित होने को सत्संग कहते हैं। परन्तु सत्संग का सही अर्थ और प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में लोगों को अभी मिल ही नहीं रहा है।

  • सत् और असत्, प्रकाश और अन्धेरा दो विपरीत शक्तियाँ (भाव) हैं।दोनों कभी साथ रह ही नहीं सकते। उजाला होते ही अन्धेरा भाग जायेगा। जहाँ सत् प्रकट हो जायेगा वहाँ असत् टिक ही नहीं सकता। इसका स्पष्ट मतलब है कि इस समय संसार के मानव जिसको सत्संग की संज्ञा दे रहे हैं, वह सत्य से बहुत दूर है।

  • मैं आम लोगों से प्रायःसुनता रहता हूँ कि आज अमुक महात्मा का सत्संग है, उपदेश है, तो मैं कभी-कभी पूछ लेता हूँ कि अमुक महात्मा, पिछले सालों से आज तक लाखों लोगों को उपदेश दे चुके होंगे, बताइये कितने प्रतिशत लोग परिवर्तित हुए? प्रायः एक ही उत्तर मिलता है कि इसमें महाराज का क्या दोष है, कलियुग के मानव ही भ्रष्ट हैं। इस प्रकार लाखों लोगों को क्षण भर में दोषी कह दिया जाता है। बेचारे अपना समय और धन नष्ट करके दूर-दूर से आते हैं, और कैसी दुर्गति होती है इनकी! कभी किसी ने महात्मा जी पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाकर जानने का प्रयास ही नहीं किया कि कहीं जड़ में तो दोष नहीं है।

  • मुझे इस सम्बन्ध में किसी संन्यासी ने एक किस्सा सुनाया था -

  • सर्दी का मौसम था। एक चौधरी अपने 10-11 साल के पुत्र को लेकर अपने ही गाँव के एक महात्मा के पास गया और बोला, महाराज यह लड़का गुड़ बहुत खाता है।बहुत मना करने पर भी मानता नहीं है। कृपया आप इसे कुछ उपदेश दें तो शायद मान जाय। उस महात्मा ने कहा, उसे 15 दिन बाद मेरे पास लाना। 15 दिन बाद वह चौधरी फिर लड़के को ले गया तो महाराज ने अधिक गुड़ खाने की हानि बताकर गुड़ खाने से मना किया। लड़के ने उस दिन से गुड़ खाना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद चौधरी उस महात्मा के पास गया और बोला महाराज इतनी सी बात कहनी थी तो पहले ही कह देते, मेरा 15 दिन गुड़ और क्यों बर्बाद होने दिया? महाराज ने कहा भाई उस दिन तक मैं भी गुड़ खाया करता था। अतः मेरी बात का उस लड़के पर कुछ भी असर नहीं होता। आप के प्रथम बार आने के बाद मैंने गुड़ खाना बिलकुल बन्द कर दिया। इसलिए 15 दिन बाद मेरी बात का उस लड़के पर असर हुआ और उसने गुड़ खाना छोड़ दिया।

    मैंने महाराज से यही प्रश्न किया था कि आज के युग के धर्म गुरुओं का प्रभाव क्यों नहीं हो रहा है? इस पर महाराज ने उपर्युक्त उदाहरण देकर कहा कि इसमें हम ही दोषी हैं। संसार के लोगों का दोष नहीं । वह महात्मा जसनाथी (सिद्ध समुदाय का) था। मेरी मुलाकात पलाना रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इन्तजार करते समय हुई थी। वह साधु बरसिंगसर में रहता है। श्री सागर नाथ जी के साथ बीकानेर स्टेशन पर आया था। मुझे पहला व्यक्ति मिला जिसने सच्ची बात कही।

  • मैं देखता हूँ गुरुदेव के पास जाने वाले सभी व्यक्ति शराब और मांस का स्वतः ही त्याग कर देते थे। उनके स्वर्गवास के बाद मुझ से जुड़ने वाले लोग भी शराब, मांस आदि तामसिक वस्तुओं का स्वतः ही त्याग कर रहे हैं, और जो ऐसा नही कर सकते वे दो-चार बार आकर आना बन्द कर देते हैं। फिर मेरे पास आने की हिम्मत ही नहीं होती। सच्चाई का असर इतना स्थाई और गहरा होता है कि एक बार जिज्ञासु बनकर आने वाला जीवन भर उस अनुभूति को नहीं भूल सकता।

सत्संग का मतलब सच्चाई का संग करने से है। जिस प्रकार आग के पास जाने से गर्मी महसूस हुए बिना नहीं रह सकती, उसी प्रकार से सत्संग का असर होता है। सच्चा गुरु उस परम चेतन सत्ता से सीधा सम्पर्क रखता है। अतः ज्यों ही आपके हृदय के तार उनसे जुड़े कि आपमें वह सात्विक प्रकाश प्रकट होने लगेगा। ज्यों-ज्यों उनका सानिध्य और प्रेम बढ़ता जायेगा, प्रकाश स्पष्ट और तेज होता जायेगा। इस प्रकार जीव ज्यों-ज्यों उस परमसत्ता के करीब जाता जायेगा, आकर्षण और गति निरन्तर तेज होती जायेगी। यह होता है सत्संग का प्रभाव। इससे भिन्न सब धोखा है।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

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