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नारी जाति के चेतन हुए बिना संसार में शान्ति असम्भव है।
23 फ़रवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

संसार के प्राणियों की उत्पत्ति का कारण नर और मादा शक्तियाँ ही हैं। दोनों के सहयोग से ही आज जो संसार हम देख रहे हैं, उसकी रचना हुई है। दोनों के मिलाप बिना यह कार्य सम्भव नहीं है।

  • संसार में युग परिवर्तन के साथ-साथ नारी जाति का पतन होता ही गया। ज्यों-ज्यों सात्त्विक शक्ति का ह्रास होता चला गया और संसार में तामसिक शक्ति का प्रभाव बढ़ता गया, मातृ शक्ति का पतन होता ही चला गया। नारी को हमारे धर्म में शक्ति का प्रतीक माना है।

  • आदि गुरु शंकराचार्य जी ने प्रारम्भिक जीवन में केवल भगवान् शंकर की ही आराधना की, जगत् जननी पार्वती को उन्होंने याद तक नहीं किया। इस तरह वे हर प्रकार से शक्तिहीन होते ही चले गये। जब उन्हें इसका ज्ञान हुआ तो भगवान् शिव से क्षमा माँग कर माँ की शरण में चले गये। इस प्रकार हम देखते हैं, सम्पूर्ण भारत में सनातन धर्म का एक छत्र साम्राज्य स्थापित करने में वे सफल हुए। मण्डन मिश्र की धर्म पत्नी गार्गी के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उन्हें पर काया प्रवेश के द्वारा वह ज्ञान प्राप्त करना पड़ा तभी उन्हें पूर्ण सफलता मिल सकी।

  • आजकल के सभी धर्मों के धर्माचार्य कंचन और कामिनी को पतन का मुख्य कारण मान रहे हैं। आज संसार में नारी जाति की जो दुर्दशा हो रही है, उसमें इन धर्माचार्यों का मुख्य हाथ है। स्त्री में मनुष्य से कई गुणा अधिक शक्ति होती है। यही कारण है कि वह शक्ति अपनी अपार सत्ता के कारण संसार की रचना करती और उसका पालन पोषण करती है। इसके विपरीत आज के मानव ने अपनी उत्पत्ति और पोषक शक्ति की जो दुर्दशा की है, उसका वर्णन असम्भव है।

  • हम देखते हैं कि परकाया प्रवेश द्वारा आदिगुरु शंकराचार्य जी ज्ञान प्राप्त नहीं करते तो उनका ज्ञान अधूरा रहता और उन्हें अपने उद्देश्य में कभी भी सफलता नहीं मिलती। आज उन्हीं के अनुयाई सभी धर्माचार्य कामिनी को पतन का कारण मान रहे हैं। सभी लोग उनके उपदेश को सुनते हैं और उसी के अनुसार कल्याण की कामना करते हैं। आदिगुरु शंकराचार्य जी अगर जगत् जननी पार्वती की आराधना नहीं करते तथा परकाया प्रवेश द्वारा ज्ञान प्राप्त नहीं करते तो आज संसार में उनका नाम तक कोई नहीं जानता।

तामसिक शक्तियों ने सबसे अधिक ह्रास इसी मातृ शक्ति का किया है। तामसिक शक्तियाँ अच्छी प्रकार समझती है कि जब तक शक्ति कमजोर नहीं होगी, तब तक वह अपनी सन्तानों की रक्षा करती रहेगी। अतः सबसे पहला प्रहार इस जगत् जननी पर ही हुआ।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • संसार का कोई भी प्राणी निश्चित समय और आवश्यकता के बिना रतिक्रिया की तरफ आकर्षित नहीं होता। एक मनुष्य जाति ही ऐसी भ्रष्ट हुई है कि जिसने सभी सीमाओं का उल्लंघन कर दिया है। जीव धारियों में यह सब से अधिक पतित हुई। संसार के सभ्य कहलाने वाले देश, समलैंगिक विवाह को न्यायसंगत करार देने तक के कुत्सित कार्य को करते हुए भी नहीं शर्मा रहे हैं। इससे अधिक पतन मानव जाति का असम्भव है।

  • मेरे से सम्बन्धित लोग, जब निरन्तर आनन्द की अनुभूति करते हैं तो उन्हें सुख और आनन्द के अन्तर का पता लगता है। आनन्द को हमारे सभी संतों ने 'नाम अमल' और 'नाम खुमारी' की संज्ञा दी है। क्योंकि इस नाम खुमारी की बात, इस युग का मानव काल्पनिक और झूठ समझता है, अतः उसकी समझ के बाहर की वस्तु है।

  • मुझे सबसे अधिक दुःख तो उस समय होता है जब भारतीय संस्कृति उस पथभ्रष्ट और विकृत संस्कृति की तरफ आकर्षित होती है। हमारे देशवासियों की ऐसी प्रवृति देख कर मुझे भारी कष्ट होता है। मेरी समझ में आज जो दशा हमारे देशवासियों की है, उसके मूल कारणों में मुख्य कारण नारी जाति का पतन है। जब तक इस जाति को चेतन नहीं किया जाता है, देश में आध्यात्मिक चेतना असम्भव है। आध्यात्मिक चेतना के बिना संसार का जो क्रमिक पतन हो रहा है, उसको रोक पाना असम्भव है। अतः मनुष्यों के साथ-साथ जब तक नारी जाति को भी आध्यात्मिक दृष्टि से चेतन नहीं किया जाता है, संसार में पूर्ण शान्ति असम्भव है।

  • जब तक सनातन धर्म के अनुसार नारी जाति का सम्मान नहीं होगा, हमारा शान्ति का सपना अधूरा ही रहेगा।

  • हमारे देश की नारी का चित्रण कवि ने इस प्रकार किया :

  • “अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।"

  • इसके विपरीत पश्चिमी जगत् ने बराबरी का रंगीन भ्रमित करने वाला नारा देकर नारी का भयंकर शोषण प्रारम्भ कर रखा है। मात्र हमारा सनातन धर्म ही है जो मनुष्य समाज को सन्तुलित व्यवस्था देता है।

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