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धर्म सम्पूर्ण विश्व में लोप प्रायः हो चुका है।
6 मई 2003
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

इस समय 'धर्म' सम्पूर्ण विश्व से लोप हो चुका है। विश्व के सभी धर्मों के धर्माचार्य चीख-चीखकर कह रहे हैं-हमारे धर्म में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। फिर विश्व में जो नरसंहार हो रहा है, उसका संचालन कहाँ से, क्यों और कैसे तथा किसके लिए हो रहा है? आज सम्पूर्ण विश्व में जातियाँ जिन्दा है, धर्म जिन्दा नहीं है।

  • हमारे धर्म प्रधान कहे जाने वाले देश में भी जातियाँ अलग-अलग संगठित हो कर "लट्ठम् शरणम् गच्छामि" हो रही हैं। क्यों? एक ही नारा दिया जाता है- ‘धर्म रक्षा हेतु’, तो फिर हर जाति अलग-अगल अस्त्रों का प्रयोग, एक दूसरे के खिलाफ क्यों कर रही है जबकि वे सभी जातियाँ एक ही धर्म के अनुयाई होने का दम्भ भर रही हैं। लट्ठ, डंडा, त्रिशूल, तलवार, शंख, मंजीरा, घंटा, चिमटा, मंदिर, मस्जिद आदि। सभी एक धर्म के अनुयाई होने की डींग हांक रहे हैं और यही नहीं सभी जातियाँ एक साथ एक ही नारा लगा रही है- ‘अहिंसापरमोधर्मः’। फिर लट्ठम् शरणम् क्यों?

  • गिरिजाघर और मस्जिद में एक ही ईश्वर की आराधना की जा रही है। अंसख्य अलग-अलग गिरिजाघर हैं एक ही धर्म के अनुयाइयों के। सभी एक दूसरे के विरूद्ध विभिन्न प्रकार के घातक, यही नहीं संहारक अस्त्रों का प्रयोग भी कर रहे हैं। कमोवेश ऐसी ही स्थिति विभिन्न मस्जिदों में एक ही खुदा की इबादत करने वालों की है। फिर आणविक, रासायनिक एवं जैविक अस्त्रों का एक दूसरे के विरूद्ध प्रयोग किस 'ईश्वर' के आदेश एवं आशीर्वाद से कर रहे हैं ? ईश्वर तो सबका एक ही है।

  • आज सम्पूर्ण विश्व में भौतिक विज्ञान की भाषा में कई प्रकार के भयानक प्राणघातक वायरस सक्रिय हो गए हैं। मध्यपूर्व के वायरस ने 11 सितम्बर को अमेरिका पर जो भीषण प्राणघातक प्रहार किया, उससे विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अपना संतुलन खो बैठा। आघात अचानक इतना गहरा लगा कि सम्पूर्ण अमेरिका मृत्यु भय से काँप उठा। मानव की इस स्थिति को भौतिक विज्ञान ने 'फोबिया' रोग की संज्ञा दी है। अभी तक भौतिक विज्ञान के पास इसका कोई उपचार नहीं है।

  • अभी-अभी हूणों ने एक ऐसे वायरस का आविष्कार किया है, जो मनुष्यों को दम घोट कर मार देता है। अभी तक उसका भी कोई इलाज नहीं ढूँढा जा सका है। यह वायरस अपने जन्म स्थान से पश्चिमोत्तर की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। यह वायरस हवा के रुख के साथ फैलता है। अतः इसका फैलाव और विस्तार मनुष्य के हाथ में न होकर ईश्वर के हाथ में है। ये सभी प्रकार के वायरस भारत को भी भयंकर कष्ट दे रहे हैं। यह बात अभी तक ज्ञात नहीं हो सकी है कि भारत ने किस प्रकार के वायरस का आविष्कार किया है। क्योंकि भारत "अहिंसापरमोधर्मः" के सिद्धान्त में विश्वास करता है, अतः उसका वायरस अशान्ति नहीं, शांति फैलावेगा। अब हिंसा और अहिंसा का युद्ध होना आरम्भ होने वाला है। परिणाम तो अभी तक भविष्य के गर्भ में छिपा है।

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