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अध्यात्मवाद का सच्चा स्वरूप
12 मार्च 1990
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

इस समय संसार के सभी धर्मों में अध्यात्म की बड़ी विचित्र स्थिति बना रखी है। हर धर्म में एक वर्ग विशेष ने इस पर अपना एकाधिकार जमा रखा है। उस वर्ग ने अपनी दिनचर्या, रहन-सहन, वेशभूषा और खान-पान आदि सभी संसार के आम मानव से भिन्न बना रखी है ताकि देखते ही लोग उनको पहचान जाएँ और उन्हें उचित सम्मान मिल सके।

  • मान, इज्जत, सम्मान आदि प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार की वेशभूषा और प्रदर्शनों का सहारा हर धर्म में लिया जाता हैं। ऐसा वर्ग समाज के आम व्यक्ति से अपने को अलग रखने का प्रयास करता है। इस प्रकार सभी धर्मों के अध्यात्मवादी लोगों का एक अलग संगठन बन गया है। अपने निहीत स्वार्थों के कारण ऐसे संगठन टूट-टूट कर कई भागों में विभक्त हो गये हैं। ईश्वर एक है और संगठन अनेक। सब के सब एक दूसरे की आलोचना और निन्दा करने में निरन्तर प्रयासरत हैं, सभी एक ही प्रयास में लगे हैं कि वे ही एक मात्र ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि हैं। संसार भर के लोगों को भेड़ों के झुण्ड की तरह अलग बाँट रखा है। अपनी-अपनी भेड़ों की पहचान के लिए अलग-अलग वेशभूषा, प्रदर्शन और सिद्धांत बना रखे हैं। इस प्रकार अपने अनुयाइयों को पहचानने और प्रचार-प्रसार करने का निरन्तर प्रयास चल रहा है। धर्म तो प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार का विषय है, जो कि सभी धर्मों से लोप हो चुका है।

  • धर्माचार्य केवल चारण और भाट की तरह अतीत के गुणगान पर जिन्दा रहने का अथक प्रयास कर रहे हैं, परन्तु फिर भी निरन्तर हृास होता जा रहा है। संसार के सभी धर्मों पर से आम आदमियों का विश्वास बहुत तेज गति से खत्म हो रहा है। आर्थिक शक्ति और संगठन के बल से अपने-अपने संगठनों को किसी प्रकार जिन्दा रख सकें, रात दिन इसका प्रयास निरन्तर चल रहा है, परन्तु परिणाम सभी को उल्टे ही मिल रहे हैं। ऐसी विषय स्थिति में ये धर्मगुरु कितने दिन अपने-अपने संगठनों को जिन्दा रख सकेंगे ?

  • धर्म का असली स्वरूप ज्यों ही प्रकट होने लगा कि इनका अस्तित्व मिटते देर नहीं लगेगी।

अध्यात्मवाद की व्याख्या करते हुए श्री अरविन्द ने कहा है,
"एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक जीवन में हर वस्तु के लिए अवकाश होता है।"

इसको और स्पष्ट करते हुए श्री अरविन्द ने कहा है,
"जीवन का हर कार्य कमोवेश अध्यात्म से ओत-प्रोत होता है।"
  • इससे स्पष्ट है कि इस समय के सभी धर्मों में समय के साथ-साथ ऐसे दोष आ गये हैं, जिनके कारण आम मानव धर्म से विमुख हो चला है। अध्यात्मवाद किसी वर्ग विशेष के अधिकार की सम्पत्ति नहीं है । इस पर संसार के हर धर्म के प्रत्येक मानव का बराबर अधिकार है। जब तक सनातन धर्म की पताका संसार में नहीं फहरायेगी, तब तक संसार में सुख शान्ति असम्भव है।

  • इस सम्बन्ध में महर्षि अरविन्द ने स्पष्ट कहा है:

  • "तुम्हें दूसरे देशों और राष्ट्रों की तरह प्रगति करने की जरूरत नहीं है। तुम्हें उनकी तरह दूसरों को दबाने और कुचलने की जरूरत नहीं है। तुम्हें उठना है ताकि तुम दुनिया को उठा सको। वह ज्ञान जिसे ऋषियों ने पाया था, फिर से आ रहा है, उसे सारे संसार को देना है।"

    उपर्युक्त से स्पष्ट होता है कि संसार को अध्यात्मदान देने में केवल भारत ही सक्षम है।

  • इस सम्बन्ध में श्री माँ ने बहुत ही स्पष्ट कहा है:

  • "भारत के अन्दर सारे संसार की समस्याएँ केंद्रित हो गई हैं और उनके हल होने पर सारे संसार का भार हल्का हो जायेगा।"

  • केवल निवृति मार्ग ही एकमात्र रास्ता नहीं है। गीता हमें स्पष्ट बताती है कि प्रवृति मार्ग बहुत ही आसान रास्ता है, जिस पर चल कर, निष्काम कर्म योग के सिद्धान्त पर जीव आसानी से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। ऐसे आसान रास्ते को छोड़कर इस समय निवृति मार्ग का ही मात्र प्रचार किया जा रहा है, क्योंकि संसार में पूर्ण रूप से तामसिक शक्तियों का प्रभाव है। भारत में तो वह सबसे अधिक ठोस बनकर जम चुकी हैं। जब किसी काम की अति हो जाती है तो उसका अन्त सुनिश्चित होता है।

  • भारत में अन्धकार का घनीभूत होना हमें स्पष्ट निर्देश दे रहा है कि इस भू-भाग पर वह प्रकाश प्रकट होने वाला है, जो संसार भर का अन्धकार भगाएगा।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

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