Image Description Icon
समन्वय किससे?
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

कलियुग के गुणधर्म के कारण संसार के सभी धर्मों के शान्ति, प्रेम, सहयोग, अहिंसा, भ्रातृभाव, मानवता आदि के सिद्धान्त, जितने आज प्रभावहीन हुए हैं, अतीत में कभी नहीं हुए। विश्व के सभी धर्माचार्य शान्ति-शान्ति की रट जितनी तेज करते हैं, अशान्ति उतनी ही तेजी से फैल रही है। अतः अब विश्व के प्रबुद्ध लोगों को धर्मान्धता और धार्मिक कट्टरपन को तिलाजंली देकर शान्त दिल दिमाग से मिल बैठकर सोचना होगा, और इस प्रकार से जो मानवीय धर्म का स्वरुप प्रकट होकर विश्व के सामने आवेगा, मात्र वही विश्व शान्ति का रक्षक होगा।

  • विश्व भर के तथाकथित समन्वयवादी लोगों ने धर्म और संस्कृति की आड़ में विश्व में हिंसा, घृणा, द्वेष और शोषण ही फैलाया है। यह सत्य नहीं तो आज विश्व भर में धर्मान्धता और धार्मिक कट्टरपन के कारण जितना नरसंहार हो रहा है, उतना पहले कभी क्यों नहीं हुआ? संसार के सभी धर्मों की मान्यता है कि ईश्वर एक है, और सम्पूर्ण विश्व के मानव उसी परमपिता परमेश्वर की संतानें हैं, फिर ईश्वर और धर्म के नाम पर विश्व में नरसंहार क्यों हो रहा है? आज विश्व की जो विस्फोटक स्थिति है, वह स्पष्ट संकेत दे रही है, कि यदि धर्म और जाति के नाम पर जो नरसंहार हो रहा है, नहीं रुका तो विश्व की कई संस्कृतियाँ खतरे में पड़ जावेंगी, और उनका अस्तित्व तक बचना कठिन हो जाएगा।

  • विश्व भर के तथाकथित समन्वयवादी लोगों ने धर्म और संस्कृति की आड़ में विश्व में हिंसा, घृणा, द्वेष और शोषण ही फैलाया है। यह सत्य नहीं तो आज विश्व भर में धर्मान्धता और धार्मिक कट्टरपन के कारण जितना नरसंहार हो रहा है, उतना पहले कभी क्यों नहीं हुआ? संसार के सभी धर्मों की मान्यता है कि ईश्वर एक है, और सम्पूर्ण विश्व के मानव उसी परमपिता परमेश्वर की संतानें हैं, फिर ईश्वर और धर्म के नाम पर विश्व में नरसंहार क्यों हो रहा है? आज विश्व की जो विस्फोटक स्थिति है, वह स्पष्ट संकेत दे रही है, कि यदि धर्म और जाति के नाम पर जो नरसंहार हो रहा है, नहीं रुका तो विश्व की कई संस्कृतियाँ खतरे में पड़ जावेंगी, और उनका अस्तित्व तक बचना कठिन हो जाएगा।

  • हमारा वैदिक दर्शन स्पष्ट कहता है कि "सर्वं खल्विदं ब्रह्म"। ऐसे समन्वयवादी लोगों ने समन्वय की आड़ में विघटन ही किया है। अन्यथा संसार आज जिस विस्फोटक अशान्ति के दौर से गुजर रहा है, नहीं गुजरता। धर्म में हिंसा का स्पष्ट अर्थ है, वह धर्म पतन की तरफ बढ़ रहा है।

द्वेष, हिंसा, घृणा और भय पर आधारित कोई भी धर्म अपने पतन को रोक नहीं सकता है। ऐसे धर्म का प्रकाश जुगनू जैसा ही होता है। जितनी भी भविष्यवाणियाँ विश्व भर के भविष्यदृष्टाओं ने की हैं, उनको ध्यान से देखने से तो एक ही सर्वमान्य तथ्य प्रकट होता है कि कलियुग के आरम्भ होने के बाद से संसार में जितने भी धर्म प्रकट हुए हैं, 21वीं सदी में उनका अस्तित्व ही मिट जावेगा। आज संसार में स्वार्थान्ध लोगों की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई है कि सच्चाई नजर ही नहीं आ रही है।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • भोले- भाले लोगों की भावनाओं को भड़काकर, एक धर्म के लोगों से दूसरे धर्म के लोगों को लड़ाकर, निर्दोष लोगों का शोषण किया जा रहा है। समन्वय की बातें करने वाले चतुर-चालाक लोग, समन्वय की आड़ में धर्म के नाम पर लोगों का शोषण कर रहे हैं। विश्व में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, अगर उसमें सच्चाई होती तो अब तक उसके परिणाम मिलने आरम्भ हो जाते। सच्चाई तो यह है कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आड़ में एक दूसरे के घर में सेंध लगाने का प्रयास ही किया जा रहा है। अगर यह असत्य है तो सांस्कृतिक आदान-प्रदान विश्व में भाईचारे का मधुर संबंध स्थापित करने में असफल क्यों हो रहा है? कटु सत्य तो यह है कि इस समय सांस्कृतिक आदान-प्रदान मात्र एक कूटनीति है।

  • मैं तो मानव मात्र में, जो एक ही शाश्वत-अविभाज्य सत्ता कार्य कर रही है, उसी की प्रत्याक्षानुभूति एवं साक्षात्कार करवाने के लिए विश्व में निकला हूँ। आज विश्व में जितने भी धर्म, जिस स्वरुप में चल रहे हैं, मैं उस संकीर्ण दायरे में कैद होने को तैयार नहीं हूँ। मेरे मिशन का दार्शनिक ग्रंथ मनुष्य शरीर है। मैं मात्र इसी ग्रंथ को पढ़ना सिखाता हूँ, अतः जब तक यह ग्रंथ संसार में रहेगा, तब तक मेरा मिशन चलता ही रहेगा।

  • मेरे रहने न रहने से इस मिशन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि आज भी मैं, हजारों शिष्यों को चेतन कर चुका हूँ। यह शक्ति उनमें जो सबसे उपयुक्त होगा, उसके माध्यम से अपना कार्य सुचारु ढंग से निरन्तर चालू रखेगी।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • यह एक ऐसी शक्ति सिद्धनाथ योगियों ने प्रकट कर दी है, जिसे विश्व की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकेगी क्योंकि इसका उपयोग मात्र सृजन में ही हो सकता है विध्वंस में नहीं। इसलिए मैं बिना किसी प्रकार के, झिझक के हर धर्म और हर जाति के लोगों को दीक्षा दे रहा हूँ। एक-एक व्यक्ति को दीक्षा देने से विश्व स्तर पर, इस ज्ञान का प्रसार असंभव है, अतः मैं सामूहिक रूप से दीक्षा देता हूँ। जिस ज्ञान से हित-अहित दोनों हो सकते हैं, उसकी दीक्षा सोच समझ कर देनी पड़ती है। मैं जितना अधिक इस ज्ञान को बाँटता हूँ, उतनी ही अधिक सामर्थ्य प्राप्त करता हूँ।

  • धार्मिक जगत् में दो प्रकार के लोग होते हैं:

    1.

    धर्मार्थी

    2.

    रहस्यवादी

  • धर्मार्थी व्यक्ति पहले किसी धर्म संघ (सम्प्रदाय) में धार्मिक शिक्षा ग्रहण करता है, और तब उसका अभ्यास करता है। वह स्वयं के अनुभवों को अपने विश्वास का आधार नहीं बनाता है, परन्तु रहस्यवादी साधक सत्य का अन्वेषण आरम्भ करता है, पहले उसकी प्रत्यक्षानुभूति करता है फिर अपने मत को सूत्रबद्ध करता है। धर्म संघ दूसरों के अनुभवों को अपनाता है, परन्तु रहस्यवादी का अनुभव अपना ही होता है। धर्म संघ बाहर से भीतर की ओर जाने का प्रयास करता है, जबकि रहस्यवादी भीतर से बाहर आता है।

  • अपराविद्या तो पढ़ी-लिखी जा सकती है, परन्तु "पराविद्या" अनिर्वाच्य विषय है। यह केवल प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार का विषय ही है। इस समय विश्व भर में धर्मार्थी लोगों का एक छत्र साम्राज्य है। हमारे देश में समय-समय पर रहस्यवादी संत प्रकट होते ही रहते हैं। श्री नानक देव जी, कबीरदास जी, रैदासजी, रामकृष्ण परमहंस आदि अनेक रहस्यवादी संत हो चुके हैं। मैं भी एक ऐसे ही रहस्यवादी संत का शिष्य हूँ।

  • मेरे मुक्तिदाता ब्रह्मनिष्ठ संत सद्‌गुरुदेव बाबा श्री गंगाईनाथ जी योगी भी ऐसे ही अद्वितीय रहस्यवादी संत थे। मेरे संत सद्‌गुरुदेव की असीम अहैतु की कृपा के कारण ही, मेरे माध्यम से संसार के लोगों में अभूतपूर्व, अद्भुत परिवर्तन आ रहा है।

    - समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • स्वामी मुक्तानंद जी ने "कुण्डलिनी जीवन का रहस्य" में गुरुपद प्राप्ति का विवरण देते हुए गीता के 13 वें अध्याय के 13 वें श्लोक का विवरण देते हुए कहा कि इसी परम पुरुष के प्रसन्न होकर आज्ञा देने तथा संत सद्‌गुरु के प्रसन्न होकर गुरुपद सौंपने पर ही साधक 'गुरु' बन सकता है, अन्यथा नहीं। स्वामी जी ने जिस रहस्य को प्रकट किया है, वह बात कभी पढ़ने सुनने को नहीं मिली। इस रहस्य का ज्ञान होने के कारण ही मैं स्वामी जी को सच्चा संन्यासी मानता हूँ।

  • मेरे में जो अभूतपूर्व परिवर्तन आया है, वह मात्र स्वामी जी के उपर्युक्त विवरण के अनुसार ही आया है। मात्र उस नील पुरुष के प्रसन्न होने से मुझे यह सामर्थ्य प्राप्ति नहीं होती। नील पुरुष के प्रसन्न होने और मेरे सद्‌गुरुदेव के प्रसन्न होकर गुरुपद सौंपने से ही यह सामर्थ्य प्राप्त हुई है। मैं मेरे सद्‌गुरुदेव के आदेशानुसार सनातन धर्म का संदेश सम्पूर्ण विश्व के सकारात्मक लोगों तक पहुँचाने निकला हूँ। मैं मानव मात्र को योग का प्रसाद बाँटने संसार में निकला हूँ। योगदर्शन, और दर्शनों की तरह किसी प्रकार का खण्डन-मण्डन नहीं करता। यह तो मनुष्य शरीर की रचना की सच्चाई पर आधारित दिव्य ज्ञान है। यह तो मानव मात्र को सम्पूर्ण रोगों से मक्त होने की क्रियात्मक विधि बतलाकर मोक्ष प्रदान करता है।

शेयर करेंः