Image Description Icon
आनन्द और सुख
5 मार्च 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

इस समय संसार में केवल भौतिक सुख को ही संसार का मानव आनन्द की संज्ञा दे रहा है। आनन्द और भौतिक सुख में रात और दिन का अन्तर है। आनन्द निरन्तर जीवन भर एक ही स्थिति में रहता है, परन्तु सुख की स्थिति निरन्तर बदलती रहती है।

  • बचपन में जिन चीजों से सुख की अनुभूति होती है, किशोरावस्था में आते ही सुख के आधार बदल जाते हैं। जवानी में उस स्थिति में और आधारभूत परिवर्तन हो जाता है और बुढ़ापा आते ही, बचपन, किशोरावस्था और जवानी में जिन, भिन्न-भिन्न कारणों से सुख की अनुभूति होती थी, उससे बिलकुल भिन्न स्थिति हो जाती है।

  • इस प्रकार हम देखते हैं, संसार का मानव जिसे आनन्द की संज्ञा दे रहा है, वह मात्र भौतिक सुख ही है। आनन्द चिरस्थाई होता है। उसका स्वरूप और कारण उम्र के साथ-साथ परिवर्तन शील नहीं है। क्योंकि इस युग के मानव ने आनन्द का स्वाद चखा ही नहीं है, इसलिए वह आनन्द और सुख में कोई अन्तर नहीं समझता है।

सुख-दुःख की स्थिति परिवर्तनशील है, परन्तु आनन्द चिरस्थाई रहता है। आनन्द अनुभूति का नाम नहीं है। वह तो चिरस्थाई स्थिति का नाम है, जो जीवन भर सुख-शान्ति के साथ-साथ मानव को मग्न और प्रसन्न चित्त रखता है।

- समर्थ सद्‌गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग

  • उम्र और परिस्थितियाँ उसमें कोई अन्तर पैदा नहीं कर सकती। परन्तु ऐसी स्थिति का अनुमान इस युग का मानव लगा ही नहीं सकता। इसमें उनका दोष नहीं है, क्योंकि आनन्द प्रदान करने वाली शक्तियाँ संसार से लुप्त प्रायः हो चुकी हैं।

  • मेरे से सम्बन्धित लोग, जब निरन्तर आनन्द की अनुभूति करते हैं तो उन्हें सुख और आनन्द के अन्तर का पता लगता है। आनन्द को हमारे सभी संतों ने 'नाम अमल' और 'नाम खुमारी' की संज्ञा दी है। क्योंकि इस नाम खुमारी की बात, इस युग का मानव काल्पनिक और झूठ समझता है, अतः उसकी समझ के बाहर की वस्तु है।

  • यही कारण है, बेचारे इस युग के मानव सुख और आनन्द में कोई भेद नहीं कर पा रहे हैं। भौतिक साधनों से आनन्द मिलता तो पश्चिम जगत् के लोग शान्ति के लिए भारत में भटकते नजर नहीं आते।

शेयर करेंः