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जीवन का रहस्य
2 जुलाई 2003
बीकानेर
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

मैं चेतना के सर्वोच्च शिखर से, अर्थात् असीम ऊँचाई से नीचे की तरफ छिटका।एक आठ-नौ माह के बालक के रूप में ऊपर की तरफ मुँह किए हुए बहुत लम्बे समय तक नीचे की तरफ चलता रहा। निरन्तर एक भय लग रहा था कि जमीन पर गिरते ही, हड्डी-पसली चूर-चूर हो जाएगी। इसलिए दोनों हाथ-पैरों को सिकोड़ कर दम साधे मौत के क्षण का इंतजार करता रहा। अचानक पाया कि मैं गुलाबी फूलों के ऊपर जा गिरा।

  • ऐसा लगा कि असीम वेग के साथ नीचे आते-आते वेग धीरे-धीरे शांत हो गया और मैं ऊपर की तरफ मुँह किए हुए ही गुलाबी फूलों पर अधर से लेट गया। तब शरीर को ढीला छोड़कर चैन की सांस ली।

  • अभी-अभी थोड़े समय से अनुभव कर रहा हूँ कि मैं इस पार्थिव चेतना में बिलकुल नया और अजीब प्राणी हूँ। मैंने भी अरविन्द के दिव्य रूपान्तरण को पढ़ा तो समझ में आया कि रहस्य क्या है ? श्री अरविन्द ने इस संबंध में कहा है:

God spirit meets God matter.

Divine transformation: No more stomach, no more heart, no more blood circulation, no more lungs, all this will disappear and be replaced by a play of vibrations representing these organs of the centers of energy. They are not the essential reality. They simply give it a form or support in certain given circumstances.

- महर्षि अरविन्द

  • सन् 1968-69 में मैंने सवा लाख गायत्री मंत्रों का अनुष्ठान कर, हर मंत्र के साथ स्वाहा के साथ हवन कुंड में आहूतियाँ दे कर किया था।

  • इसके बाद मुझे ध्यान के दौरान मेरे शरीर में दूधिया रंग का सफेद दिव्य प्रकाश दिखाई दिया। इस प्रकाश में मुझे असीम शांति का अनुभव हुआ। उस समय मुझे भी विचार आया था कि मेरे अन्दर यह प्रकाश कैसा? लीवर, तिल्ली, फेफड़े, हार्ट आदि कोई भी अंग दिखाई नहीं दे रहा है। जब मैंने इन अंगों को देखने का प्रयास किया तो उस प्रकाश में मुझे भंवरे के गुंजन की ध्वनि सुनाई दी। जब मैं आवाज के केन्द्र बिन्दु तक पहुँचा तो पाया कि वह तो गायत्री मंत्र की ध्वनि थी, जो मेरी नाभि के अन्तर में से निरन्तर निकल रही थी।

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