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भेद बुद्धि के भ्रम के कारण ही आलोचना-प्रत्यालोचना होती है।
22 फरवरी 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

मैंने जो कुछ पिछले पृष्ठों में लिखा है, वह पूर्ण रूप से मेरी प्रत्यक्षानुभूति पर आधारित है। इस समय संसार में आध्यात्मिक जगत् में जो वस्तुस्थिति चल रही है, उसका और सच्चाई का तुलनात्मक वर्णन करने के लिए मुझे विवश होकर आलोचनात्मक शैली का सहारा लेना पड़ा। यह मात्र समझाने के लिए किया गया प्रयास है।

  • मैं जो कुछ बताना चाहता हूँ, उसे फिर भी स्पष्ट रूप से नहीं व्यक्त कर सका हूँ, क्योंकि अध्यात्मवाद मात्र प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार का ही विषय है। सांसारिक भाषा में उसे व्यक्त करना कठिन ही नहीं असम्भव सी बात है। सांसारिक जीवों को उसी की भाषा में समझाने के लिए इस तरीके के अलावा और कोई रास्ता है नहीं।

संसार का यह विस्तृत स्वरूप मात्र उसी एक परमसत्ता का स्वरूप है। विरोधाभास और भिन्नता जो हमें दिखाई दे रही है, वह मात्र त्रिगुणमयी माया का खेल है।
  • दुःख-सुख की अनुभूति ही जीवन का रहस्य है। जब जीव माया की परिधि से ऊपर उठ जाता है तो उसका भ्रम धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में उस महान् आत्मा को संसार की हर वस्तु में मात्र उसी परम सत्ता के दर्शन होते हैं।

  • यह एक सच्चाई है। जब संसार एक ही सत्ता का स्वरूप है तो आलोचना कौन करे, किसकी करें ?

  • यह सब भेद तो आज्ञाचक्र के नीचे के माया के क्षेत्र में ही महसूस होता है। माया ने जीवों को ऐसा भ्रमित कर रखा है कि किसी को सच्चाई का भान तक नहीं हो पा रहा है। अलीपुर जेल में भगवान् ने महर्षि अरविन्द को जो दो आदेश दिये थे, उससे स्थिति बिलकुल स्पष्ट हो जाती है।

पहला आदेश
मैंने तुम्हें एक काम सौंपा है। तुम्हें इस राष्ट्र को उठाना है। मैं नहीं चाहता कि तुम अधिक समय तक इस चार दीवारी में बन्द रहो। तुम शीघ्र छूट जाओगे। जाओ और मेरा काम करो।

- भगवान श्री कृष्ण का महर्षि अरविन्द को पहला आदेश

अलीपुर प्रेसीडेंसी जेल
दूसरा आदेश
इस एक वर्ष के एकान्तवास में तुम्हें बहुत कुछ दिखाया गया है, जिन बातों के बारे में तुम्हें शंका थी, उनको तुमने प्रत्यक्ष रूप से देख लिया है। मैं इस देश को अपना संदेश फैलाने के लिए उठा रहा हूँ। यह संदेश उस सनातन धर्म का संदेश है, जिसे तुम अभी तक नहीं जानते थे, पर अब जान गये हो। तुम बाहर जाओ तो अपने देशवासियों से कहना कि तुम सनातन धर्म के लिए उठ रहे हो, तुम्हें स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं, अपितु संसार के लिए उठाया जा रहा है।

जब कहा जाता है कि भारत वर्ष महान् है तो उसका मतलब है सनातन धर्म महान् है। मैंने तुम्हें दिखा दिया है कि मैं सब जगह और सब में मौजूद हूँ। जो देश के लिए लड़ रहे हैं, उन्हीं में ही नहीं, देश के विरोधियों में भी, मैं ही काम कर रहा हूँ। जाने या अनजाने, प्रत्यक्ष रूप से सहायक होकर या विरोध करते हुए, सब मेरा ही काम कर रहे हैं। मेरी शक्ति काम कर रही है, और वह दिन दूर नहीं जब काम में सफलता प्राप्त होगी।

- भगवान श्री कृष्ण का महर्षि अरविन्द को दूसरा आदेश

अलीपुर प्रेसीडेंसी जेल
  • भगवान् के उपर्युक्त आदेशों से स्थिति पूर्णरूप से स्पष्ट हो जाती है। उपर्युक्त से स्पष्ट हो गया है कि सर्वत्र एक ही शक्ति की सत्ता है, फिर कौन, किसका विरोधी है?

  • मुझे भी संसार में सनातन धर्म के लिए कुछ करने का आदेश है। उसका पावन संदेश संसार के लोगों तक पहुँचाना है, इसीलिए सेवाकाल समाप्त होने से छह साल पहले, सेवानिवृत होने के आदेश दे कर, अपने काम में लगा दिया है।

    - गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग

  • मैं एक सेवा छोड़ कर दूसरी सेवा में लग गया हूँ। जो कुछ मुझे करना है, वह पहले से सुनिश्चित है। इस सम्बन्ध में सारी स्थिति मेरे सामने स्पष्ट है। मुझे मेरा पथ पग-पग पर आज भी प्रदर्शित किया जा रहा है। मुझे जो करना है उसके लिए मैं पूर्ण रूप से आश्वस्त हूँ

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