मंत्र

ये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अपनी चेतन और अचेतन वस्तुओं सहित एक दिव्य शब्द से बना है।

दुनियां के सभी धर्मों में कितनी भी विभिन्नताएं हों पर एक बात पर सभी एकमत हैं कि इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक दिव्य शब्द से हुई है।

बाइबल भी कहती है कि- सृष्टि के आरम्भ में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था, शब्द ईश्वर था। वह शब्द ईश्वर के साथ आरम्भ हुआ था। हर वस्तु ‘उसके’ द्वारा बनाई गई थी और ‘उसके’ बिना कुछ भी बनाना सम्भव नहीं था। जो कुछ भी बनाया गया था, ‘उसमें’ ही जीवन था वह जीवन ही इंसान का प्रकाश था।

इस बारे में श्री अरविंद ने ‘चेतना कि अपूर्व यात्रा’ पुस्तक में लिखा है कि “भारत वर्ष में एक गुह्य विद्या विद्यमान है जिसका आधार है नाद तथा चेतना-स्तरों के अनुरूप स्पन्दन-विधि के भिन्न-भिन्न तरीके।

उदाहरणतः यदि हम ‘ओम’ ध्वनि का उच्चारण करें तब हमें स्पष्ट अनुभव होता है कि वह मूर्धा के केन्द्रों को घेर लेती है। इसके विपरीत ‘रं’ ध्वनि नाभि केंद्र को स्पर्श करती है।

  • हमारी चेतना के प्रत्येक केंद्र का एक लोकविशेष के साथ सीधा संबंध होने के कारण, कुछ ध्वनियों का जप करके मनुष्य उनके समरूप चेतना-स्तरों के साथ सम्बंध स्थापित कर सकता है।

  • एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक अनुशासन इसी तथ्य पर आश्रित है। वह ‘तांत्रिक’ कहलाता है क्यों कि तंत्र नामक शास्त्र से उसकी उत्पत्ति हुई है। ये आधारभूत या मूल ध्वनियाँ, जिनमें संबंध स्थापित करने की शक्ति निहित रहती है, ‘मंत्र’ कहलाती हैं।

  • मात्र गुरु द्वारा ही शिष्य को उपदिष्ट ये मंत्र, सदा गोपनीय हैं। मंत्र बहुत तरह के होते हैं (चेतना के प्रत्येक स्तर की बहुत सी कोटियाँ हैं) और सर्वथा विपरीत लक्ष्यों के लिए इनका प्रयोग हो सकता है।

  • कुछ विशिष्ट ध्वनियों के संमिश्रण द्वारा मनुष्य चेतना के निम्न स्तरों पर, बहुदा प्राण-स्तर पर, इनसे समरूप शक्तियों के साथ संपर्क जोड़कर, अनेक प्रकार की बड़ी ही विचित्र क्षमताएं प्राप्त कर सकता है – ऐसे मंत्र हैं जो घातक सिद्ध होते हैं (पांच मिनट के अंदर भयंकर वमन होने लगता है), ठीक-ठीक निशाना बनाकर वे शरीर के किसी भी भाग पर, किसी अंगविशेष पर प्रहार करते हैं, आग लगा देने वाले, रक्षा करने वाले, मोहिनीशक्ति डाल वश में करने वाले भी मंत्र होते हैं। इस तरह का जादू-टोना या यह स्पंद-रसायन एकमात्र निम्न-स्पन्दों के सचेतन प्रयोग का परिणाम होता है।

  • किन्तु एक उच्चतर जादू जो कि होता है स्पन्दों के ही व्यवहार द्वारा सिद्ध, किन्तु चेतना के ऊर्ध्व स्तरों पर – काव्य, संगीत, वेदों तथा उपनिषदों के आध्यात्मिक मंत्र अथवा वे सब मंत्र जिनका कोई गुरु अपने शिष्य को, चेतना के किसी विशेष स्तर के साथ, किसी विशेष शक्ति अथवा दिव्य सत्ता के साथ, सीधा सम्बंध स्थापित करने के लिए सहायता करने के उद्देश्य से, उपदेश करता है।


"अनुभूति और सिद्धि कि शक्ति स्वयं इस ध्वनि में ही विद्यमान रहती है – यह ऐसी ध्वनि होती है जो हमें अंतदृष्टि प्रदान करती है।“

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