Image Description Icon
आध्यात्मिक चेतना कैसे फैलती है ?
मार्च 5, 1988
गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग
एवीएसके, जोधपुर के संस्थापक और संरक्षक

आध्यात्मिक चेतना ईश्वरीय शक्ति के प्रयास से फैलती है। इसमें मानवीय बुद्धि द्वारा किया गया प्रयास सार्थक सिद्ध नहीं हो सकता। मानवीय प्रयास को अधिक से अधिक वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित प्रचार से अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मनुष्य अपने पूर्ण ज्ञान और शक्ति के सहारे काफी लम्बे समय तक आध्यात्मिक प्रचार चला सकता है। भौतिक साधनों के द्वारा निरन्तर लाखों लोगों को इकट्ठा कर सकता है।

  • परन्तु इस प्रकार चलाया गया कोई भी अभियान समाप्त होने के बाद कोई भी असर पीछे नहीं छोड़ता। इस प्रकार के असंख्य अभियानों से जब लोगों को कुछ भी परिणाम नहीं मिला तो लोग विमुख हो गये। इस प्रकार विमुख हुए लोगों की संख्या जब अधिक हो गई तो लोगों में विद्रोह की हिम्मत आ गई और धार्मिक गुरुओं का खुला विरोध होने लगा। क्योंकि इस युग के गुरुओं के पास जो वस्तु बची हुई है, उसके अलावा वे कुछ भी देने की स्थिति में नहीं हैं।

  • ऐसी स्थिति में दिन-दिन बिगड़ते हुए हालात को काबू करने के लिए, इस युग के धर्म गुरुओं ने प्रदर्शन, शब्दजाल, तर्क बुद्धि और धन के सहारे विद्रोह को दबाने का प्रयास किया। ज्यों-ज्यों इस प्रक्रिया से धर्मगुरुओं ने अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास तेज किया, हालात काबू से बाहर हो गए।चन्द मरणासन्न स्त्री-पुरुषों के अलावा उनके पास कुछ भी नहीं बचा। वे भी अपने जीवन भर के किये हुए कर्मो के भय से भयभीत होकर बचाव के लिए रह गये।

  • अपनी ही तस्वीर से भयभीत ये शक्तिहीन असहाय लोग कुछ भी करने की स्थिति में नहीं हैं। धर्मगुरु भी अच्छी प्रकार समझते हैं कि जीवन भर इन्होंने जो अन्याय अत्याचार करके लूटा है, उसी का भय इनको बुरी तरह से खा रहा है। उनकी इस कमजोरी को अच्छी प्रकार समझते हुए धर्म गुरु इन्हें त्याग, तपस्या, दान-पुण्य, पाप आदि की व्याख्या अपने हिसाब से बताकर किसी प्रकार अपना बचाव करने में लगे हुए हैं।

सृजन की शक्ति तो चढ़ते हुए सूर्य में होती है। इसीलिए संसार का मानव, उदय होते हुए सूर्य को नमस्कार करता है, कोई भी अस्त होते हुए सूर्य को नमस्कार नहीं करता। इस युग के शक्तिहीन और असहाय धर्मगुरु अस्त होते हुए सूर्य के सहारे कितने दिन तक जिन्दा रह सकेंगे, यह स्पष्ट बात है।

गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग

— मार्च 5, 1988
  • जिस प्रकार डूबता व्यक्ति तिनके के सहारे नहीं बच सकता, ठीक उसी प्रकार यह कागज की नाव तो डूबेगी। अब इसे बचाना असम्भव हो गया है। इतिहास साक्षी है, क्षीण होती हर सत्ता नई शक्ति के उदय होने का संकेत है। इस युग का मानव ऐसी किसी व्यवस्था में विश्वास नहीं करता जो कोई परिणाम नहीं देती।

  • ईश्वर अगर है तो उससे सम्पर्क करके प्रार्थना करने पर निश्चित रूप से परिणाम मिलने चाहिए। परिणाम के अभाव में हमारे दिमाग में दो प्रश्न पैदा होते हैं या तो ईश्वर नाम की कोई शक्ति है ही नहीं, और अगर है तो हमारा संदेश उसके पास पहुँच ही नहीं रहा है। क्योंकि हमारे सभी संत कह गये हैं कि ईश्वर परम दयालू है। ईश्वर कृपा के उदाहरणों से हमारे धार्मिक ग्रन्थ भरे पड़े हैं।

  • हम देखते हैं, इस युग में प्रचलित आराधना पद्धति से की गई प्रार्थना का कोई उत्तर नहीं मिल रहा है। इससे यही नतीजा निकलता है कि हमारे प्रार्थना पत्र पर पाने वाले का सही पता नहीं लिखा होता है। पता अगर ठीक होता तो उसका उत्तर निश्चित रूप से मिलता। अतः इस युग के मानव को अगर उस परमसत्ता की खोज करनी है तो उसका सही पता जानना आवश्यक है। भौतिक विज्ञान ने इस प्रकार की खोज से अपनी जो उच्चसत्ता और शक्ति प्राप्त कर ली है, ठीक उसी प्रकार अध्यात्म विज्ञान भी अपनी परमोच्च स्थिति पर पहुँच सकता है।

अब समय आ गया है कि, अब वह परमसत्ता स्वयं प्रकट होकर अपने प्रकट किये हुए भौतिक विज्ञान को अधीन करके संसार में स्वयं का सुख शान्ति का राज्य स्थापित करे। जब तक वह परमसत्ता स्वयं प्रकट होकर अपनी प्रकट की हुई ताकत को अपने अधीन संचालित नहीं करेगी, संसार में सुख शान्ति असम्भव है।

गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग

— मार्च 5, 1988
  • इस समय सारे भौतिक विज्ञान की उपलब्धियाँ, तामसिक शक्तियों के अधीन हैं। तामसिकता का गुणधर्म, हिंसा, घृणा, द्वेष और विनाश है। इन शक्तियों से सृजन की उम्मीद के बल पर आज तक कई प्रयास किये, परन्तु सृजन के स्थान पर निरन्तर संहार ही प्रगति करता रहा। इस शताब्दी के प्रारम्भ से ही अनेक राजनेताओं ने शान्ति लाने का प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्ण रूप से असफल सिद्ध हुए।

  • प्रथम विश्व महायुद्ध ने संसार में भयंकर नरसंहार और अशान्ति फैला दी। सारा संसार अशान्त और आतंकित हो गया। तब उन भौतिक सत्ता सम्पन्न राष्ट्राध्यक्षों ने संसार में शांति लाने हेतु राष्ट्र संघ(लीग ऑफ नेशन्स) का निर्माण किया।

  • यह प्रयास भी असफल रहा, और दूसरा विश्वयुद्ध पहले से भी भयंकर हुआ। तब शान्ति लाने का और प्रयास करते हुए उन्होंने ‘संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ) का निर्माण किया। परन्तु हम देख रहे हैं कि यू. एन. ओ. भी शान्ति लाने में पूर्ण रूप से असफल हो चुका है।

  • संसार में इस समय एक भी ऐसा क्षण नहीं बीत रहा है, जिसमें भौतिक विज्ञान ने नरसंहार बन्द किया हो। वर्षों से संसार के किसी न किसी हिस्से में नर संहार और युद्ध निरन्तर जारी है। विश्व की सर्वोच्च शक्तियों के सभी प्रयास असफल हो रहे हैं। संसार में अब तो हर क्षेत्र में नरसंहार प्रारम्भ हो गया है। दोनों विश्व युद्धों से भी अधिक विनाश रात दिन संसार में हो रहा है। सभी बहिर्मुखी बौद्धिक प्रयास असफल हो चुके हैं क्योंकि शान्ति अन्दर से आती है, शान्ति का सम्बन्ध दिल से है।

  • अतः अन्तर्मुखी आराधना से उस परमसत्ता से जुड़े बिना शान्ति असम्भव है। मैं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव कर रहा हूँ कि जो विकास मेरे तथा मेरे गुरुदेव में हो चुका है, वह आध्यात्मिक और भौतिक जगत् में प्रत्यक्ष परिणाम दे रहा है। मुझसे जुड़ने वाले सभी लोगों को वह परम आनन्द और परम शान्ति मिल रही है।

जिसको कि विभिन्न संतों ने ‘‘नाम खुमारी” और “नाम अमल” की संज्ञा दी है। मैं तथा मेरे गुरुदेव जितना आरोहण कर चुके हैं, उस पथ की यात्रा में मुझसे जुड़ने वाले लोगों को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हो रही है।

गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग

— मार्च 5, 1988
  • उन्हें इस आरोहण में जिन विचित्र-विचित्र लोकों की प्रत्यक्षानुभूतियाँ हो रही है, उससे सभी आनन्द विभोर हो रहे हैं। मूलाधार से लेकर अगम लोक, जहाँ तक वे पहुँच सके हैं, हमारे ऋषियों द्वारा वर्णित सभी बातों की प्रत्यक्ष उपलब्धि हो रही है।

  • इसके साथ-साथ सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर से सम्बन्धित अनेक प्रकार की घटनाएँ, आध्यात्मिक शक्तियाँ पहले बता रही है। और सभी क्रमिक रूप से भौतिक जगत् में सत्यापित हो रही हैं। इससे इन दोनों शरीरों के अन्दर ‘आत्मा’ की बात हमारे संतों ने जिस प्रकार बताई है, उसके भी स्पष्ट चिह्न जिन्हें मैं बहुत पहले देख चुका हूँ, मेरे अनुयाइयों को प्रत्यक्ष रूप से मिल रहे हैं।

  • भौतिक जगत् में जिन आध्यात्मिक बातों को आज तक मानव केवल काल्पनिक मानता है, वे सभी असंख्य प्रमाणों सहित सत्य प्रमाणित हो रही हैं। मूलाधार से लेकर आज्ञाचक्र तक के माया के जगत् की सभी शक्तियों की प्रत्यक्षानुभूति, त्रिगुणमयी माया (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) सहित हो रही है। ये सभी शक्तियाँ भौतिक जगत् में भी सत्यापित हो रही हैं।

  • आज्ञाचक्र से ऊपर के लोक पूर्ण रूप से सात्त्विक हैं तथा यहाँ शब्द का रूप बदल कर निरन्तर सूक्ष्म रूप धारण करता जाता है। अतः इनकी प्रत्यक्षानुभूतियाँ पूर्ण रूप से मानवीय भाषा में व्यक्त नहीं की जा सकतीं। पूरे प्रयास के बावजूद सभी अन्त में यही कह देते हैं कि जो कुछ हम देख रहे हैं, सुन रहे हैं और अनुभव कर रहे हैं, उसे हम भाषा द्वारा व्यक्त करने में अपने आपको असमर्थ महसूस कर रहे हैं। मुझे बहुत बार लोग पूछते हैं कि क्या इन रहस्य पूर्ण बातों को कभी मानवीय भाषा में बताना सम्भव होगा।

मैं उन्हें हमेशा एक ही उत्तर देता हूँ कि मैंने तुम्हें प्रारम्भ में ही बता दिया था कि अध्यात्म ज्ञान प्रत्यक्षानुभूतियों और साक्षात्कार का विषय है। इसमें मानवीय बुद्धि और ज्ञान कुछ भी सहयोग देने की स्थिति में नहीं है। यही कारण है मैंने आप लोगों को आज तक कोई उपदेश नहीं दिया, कोई कर्मकाण्ड या बहिर्मुखी आराधना की भी सलाह नहीं दी। मैंने हमेशा यही बात कही कि इस जगत् में प्रेम सद्भाव, समर्पण, दया और सात्त्विक भाव से ही कुछ प्राप्त किया जा सकता है। संसार के भौतिक वैभव से यह प्राप्त होने वाला ज्ञान नहीं है।

गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग

— मार्च 5, 1988
  • भौतिक सत्ता तो अधिनस्थ बहुत ही छोटी शक्ति है। मैं देख रहा हूँ, तीनों शरीरों को भेद कर जिसने आत्मा का क्षणिक प्रकाश देख लिया, उसे पिछले जन्म का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार आत्मा से जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध होगा, उसी के अनुसार उसे पिछले कई जन्मों का ज्ञान होना सम्भव है। इस प्रकार हमारे धर्म का पुनर्जन्म का सिद्धान्त भी भौतिक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।

  • आज मेरे माध्यम से जो कुछ हो रहा है, वह ईश्वर की कृपा और गुरुदेव के आशीर्वाद का परिणाम है। प्रारम्भ से लेकर मेरे जीवन के अन्तिम तक के बारे में मुख्य-मुख्य सभी कार्यों का स्पष्ट आदेश, उस परमसत्ता ने दे दिया है। मैं सप्रमाण पूर्ण रूप से आश्वस्त हूँ। इसके अलावा वह पूर्ण सत्ता पग-पग पर पूर्णरूप से मेरा पथ प्रदर्शन कर ही है। मुझसे जुड़ने वाले लोगों से सम्बन्ध स्थापित करने वाले सभी जिज्ञासु लोगों में भी वह सात्विक करण्ट अनायास दौड़ने लगता है।

शेयर करेंः