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छगन कुमार

पेट दर्द व पथरी से निजात

पता

छगन कुमार पुत्र श्री गोरधन लाल जी प्रजापत, जोधपुर

गुरुदेव ने मुझे नवजीवन दिया, आध्यात्मिक ज्ञान दिया, उन दयालु गुरुदेव के श्री चरणों को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ। जीवन में परेशानियाँ और बीमारी मेरे जन्म के साथ ही शुरू हो गईं थीं। मुझे खांसी, बुखार तो कभी लू कभी सिरदर्द और पेट दर्द हर समय रहता था। दवाईयों पर जीवन चलने लगा। मेरे पिताजी सप्ताह में कभी दो या तीन बार डॉक्टर को दिखाते थे और डॉक्टर दवाईयों की लम्बी सूची हाथ में थमा देता था। मैंने 7-8 साल में ही इतनी दवाईयाँ खाली कि शरीर से दवाईयाँ की ही बदबू आती थी।

  • जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था, उस समय मेरे पेट में भयंकर दर्द हुआ। जब डॉक्टर से चैकअप कराया तो डॉक्टर ने किडनी में पथरी बताई। डॉक्टर ने कहा कि किडनी का ऑपरेशन होगा। ऑपरेशन करते समय, पथरी, किडनी में बिखर गई और उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बताया। मुझे पहले से ज्यादा दर्द होने लगा। दो दिन सही तो चार दिन बीमारी में ही गुजारने पड़ते थे। जब दवाईयों से पार नहीं पड़ी तो किसी के कहने से मेरे पिताजी तांत्रिकों के पास ले गए। प्रत्येक तांत्रिक किसी न किसी देवता का दोष बता ही देता था और कुछ टोने-टोटके करने की सलाह देता था।

  • इस प्रकार जीवन नारकीय बन गया। ऐसे समय में, योग-संयोग कहिए या सदगुरुदेव की अहैतुकी कृपा, मेरे पिताजी ने पूज्य सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग के आश्रम में फर्श बनाने का ठेका लिया। वहाँ पर सैंकड़ों लोग गुरुदेव का ध्यान करने आते थे। जब दीक्षा का कार्यक्रम होता तब तो, हजारों लोग दीक्षा लेने आते थे, आश्रम में रह रहे साधक सांगाराम जी को मेरे पिताजी ने मेरी परेशानी और पथरी के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि आप बच्चे को लाकर गुरुदेव से दीक्षा दिला दो, तो ठीक हो जाएगा।

मेरे पिताजी मुझे आश्रम ले आए और गुरुदेव से दीक्षा दिला दी। मैं नियमित नाम-जप और ध्यान करने लगा। मेरे पेट की नाड़ियों का खींचाव, ध्यान के दौरान स्वतः ही होने लगा। मुझे अच्छी गहरी नींद आने लगी, जो पहले रात भर नींद नहीं आती थी और मैं दो-तीन महीने में बिल्कुल ठीक हो गया।
  • मैंने 2002 के अंत में दीक्षा ली थी। आज करीब छह साल हो गए हैं, मैं बिल्कुल ठीक हूं। पथरी स्वतः ही पेशाब के साथ निकल गई। दवाईयाँ छूट गई हैं। जीवन आनंदमय बन गया है।

  • पहले मैं पढ़ाई में बहुत कमजोर था। आठवीं में दो बार फेल हो गया था। जब मैं दसवीं में पढ़ रहा था तो मेरे पड़ौसी हँसते थे कि आठवीं में दो बार फैल हो गया अब दसवीं में कितनी बार फैल होकर पास करेगा। लेकिन गुरुदेव की आराधना से मेरा मन पढ़ाई में एकाग्र होने लगा और मैंने द्वितीय श्रेणी (Second Division) से दसवीं उत्तीर्ण की। गुरुदेव की आराधना मानव का सर्वांगीण विकास करती है, यह मेरे जीवन में घटित हुआ है।

  • आज मेरी उम्र २३ साल है, मैं ठेकेदारी का कार्य करता हूँ। आध्यात्मिक व भौतिक दोनों ही तरह से मैं सम्पन्न हूँ। गुरुदेव की इस अद्भुत लीला को बारम्बार नमन करता हूँ कि 'सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया' उक्ति अब गुरुदेव के माध्यम से चरितार्थ हो रही है। इतने दिनों तक तो ऐसे श्लोंको को केवल कण्ठ में मिश्री घोल कर गाया जा रहा था। भारत के सभी प्रमाणिक ग्रंथ अब गुरुदेव के माध्यम से बोल रहे हैं।

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