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चन्दाराम गोदारा

12 साल पुराने अफीम से मुक्ति

पता

चन्दाराम गोदारा (चन्दूजी) उम्र 40 साल गाँव कानासर (भणियाणा) जिला-जैसलमेर

मैं चन्दाराम, पुत्र श्री सोनाराम गोदारा (जाट) ग्राम-कानासर (भणियाणा) तहसील-पोकरण जिला जैसलमेर का निवासी हूँ। मैं जनवरी, 1987 से पत्थर और मकान बनवाने का कार्य (Building Work) करता हूँ। इस कार्य में कठिन परिश्रम (Hard Work) करना पड़ता है। इसलिए मेरी अफीम खाने की आदत पड़ गई। अफीम खाकर चाय पीने पर थोड़ी देर के लिए स्फूर्ति आ जाती है, लोग अपना काम निकालने के लिए बड़ी मान-मनुहार कर काफी मात्रा में अफीम दे देते थे। इस प्रकार मैं बड़ा अफीमची बन गया। मैं पिछले 11-12 वर्षों से अफीम खा रहा था। मैं पिछले दो साल से अफीम छोड़ने की कोशिश कर रहा था। मेरे गाँव के स्थानीय डॉ. गोरखाराम से अफीम छोड़ने की टेबलेट व दवाईयां ली तथा ग्यारह महीने तक अफीम नहीं लिया।

  • इस दौरान दो महीने तक उल्टी व दस्तें होती रही, तीन-चार महीने तक शरीर में बेचैनी होती रही। रात को नींद नहीं आती थी। दवाई बेअसर हो गई। मैं पूरी तरह से टूट चुका था। मेरे शरीर में आलस घर कर गया। काम करने का जी ही नहीं करता था। मैंने कुछ लोगों से राय ली, तो कुछ शराब पियकड़ों ने बताया कि शाम को खाना खाने से पहले शराब पियो, तो रात को अच्छी नींद आएगी। तो मैंने शराब पीना शुरू कर दिया। जिससे मेरे शराब पीने की आदत पड़ गई। पहले मैं चाय नहीं पीता था परन्तु अफीम छोड़ने से मेरे हर समय सिर दर्द होता रहता था। इसलिए मैंने चाय पीना शुरू कर दिया। अफीम छोड़ने के बाद मुझे थकान महसूस होने लगी, तो थकान को दूर करने के लिए मैंने बीड़ी, सिगरेट और जर्दे का नशा करना शुरू कर दिया। इस प्रकार मेरे अफीम के अलावा सभी नशों की लत पड़ गई।

  • अफीम नहीं लेने के कारण शरीर कमजोर हो गया, किसी भी काम में जी नहीं लगता था, मेरे मन में हर समय अफीम खाने की इच्छा होती थी। आखिर सब्र टूट ही गया और 11 महीने बाद मैंने वापिस अफीम खाकर सारी कसर निकाल दी। तब मैंने मन में सोच लिया था कि अब मैं इस जिन्दगी में कभी भी इस जहर (अफीम) से मुक्त नहीं हो पाऊंगा। मैं काम ठेके पर लेता था व दूसरे कारीगरों व मजदूरों से करवाता था और ऊपरी देख-रेख मैं करता था।

इन घटनाओं के बाद देवताओं व भूत-पलीतों से लफड़ा छूट गया। मेरे दिल में असीम शांति हुई। मुझे लगा कि मेरा कोई दूसरा जन्म हुआ है। नशों से घृणा हो गई। इन बहुत सारी घटनाओं तक मैं केवल मात्र गुरुदेव की फोटो से ध्यान करता था। सदगुरुदेव की तस्वीर ने मेरा जीवन बदल दिया। चाय व जर्दे का नशा रह गया था तो मैंने गुरुदेव से दीक्षा लेने का विचार किया।
  • योग-संयोग कहिए या ईश्वरीय अनुकम्पा, मैंने कलाऊ ग्राम में पूर्व सरपंच श्री सांगाराम सारण के मकान बनवाने का ठेका लिया। 9-10 महीने तक काम चलता रहा। मैं पाँच सात दिन बाद कभी जाता था, कारीगरों को कार्य संबंधी कुछ जरूरी हिदायतें देकर जल्दी ही दूसरे ठेकों पर चला जाता था। उनके घर पर ज्यादा नहीं रुकता था, क्योंकि मैं तो सभी नशे करता था और सांगाराम जी गुरुदेव के शिष्य थे, इसलिए मेरा और उनका सौदा नहीं बैठता था।

  • आखिर में मकान के फर्श बनवाने का काम आया, जो मुझे अकेले को ही करना था। इनके घर पर शादी होने वाली थी इसलिए कार्य जल्दी पूरा करना था। उन्होंने आग्रह किया कि आज रात को रुककर, समय पर फर्श का कार्य पूरा कर दो और मैंने उनकी बात मान ली। शाम को भोजन से पहले मेरे तो शराब पीने की आदत थी, लेकिन उन्होंने कहा कि आप हमारे गुरुदेव की फोटो, ललाट पर देखो तथा मन में भगवान् का कोई भी नाम लो तो आपके अफीम व शराब छूट जाएगी। मैंने मन में विचार किया कि छोड़ने की कोशिश में तो दूसरे सभी नशों से घिर गया था। लेकिन उनकी एक बात ने मुझे बड़ी राहत दे दी कि 'आपको नशा नहीं छोड़ना है, नशा आपको छोड़कर चला जाएगा।' मैंने विचार किया कि बड़े आदमी का कहना मान लेना चाहिए। उनके घर का माहौल पूरा गुरुमय था। जब मैंने पहले दिन 15 मिनट ध्यान किया तो मुझे बड़ा आनंद आया। और मेरी पहले दिन से ही सिद्धयोग के प्रति रूचि जाग्रत हो गई। सुबह, दोपहर और शाम को, दिन में तीन बार अफीम लेता था और सुबह-शाम सांगाराम जी के साथ में बैठकर ध्यान भी करता था। तीसरे दिन शाम को घर गया तो शराब पीने की इच्छा हुई। मैंने मन में सोचा, "सांगाराम जी कहते हैं कि शराब छूट जाएगी, मैं पीकर देखता हूँ, कैसे छूटेगी?' बोतल में पाव-भर बची हुई पड़ी थी, मैंने पी ली, लेकिन कोई नशा नहीं आया, तो मैं अन्दर गया, एक और बोतल लाकर बैठा-बैठा पी गया, लेकिन बिल्कुल भी नशा महसूस नहीं हुआ। लगा जैसे मैंने पानी पिया हो। तो मेरे दिल में गुरुजी के प्रति कुछ श्रद्धा जगी कि कोई शक्ति जरूर है।

  • दूसरे दिन सुबह जल्दी उठा व चाय पीकर, नहा-धोकर, बिना अफीम लिए ही घर से रवाना हो गया। उस दिन मेरे अफीम उतरा ही नहीं। मैं सांगाराम जी के घर पर काम करने चला गया। काम पर साथियों को अफीम लेने-देने की आदत वश मान-मनुहार करने लगा। मैं हर समय अफीम अपने पास रखता था। जब सबने अफीम ले लिया, तो फिर मुझे देने लगे। मैंने कहा कि मेरे अफीम लिया हुआ है, तो भी वे लोग जोर जबरदस्ती करने लगे। हमको देखकर, दूर खड़े सांगाराम जी हमारे पास आए तथा उन्होंने मुझे पूछा कि जब आपके अफीम उतरा ही नहीं है तो क्यों ले रहे हो? और उन्होंने उन लोगों को मना कर दिया कि इनको अफीम नहीं देना है। सुबह व दोपहर की चाय पीकर काम करता रहा। शाम को छुट्टी होने पर कमीज (शर्ट) पहना तो अफीम का ख्याल आया कि आज अफीम उतरा ही नहीं। उस दिन के बाद अफीम, शराब व बीड़ी के धूएं तक से नफरत होने लग गई।

  • लेकिन जर्दे से घृणा नहीं हुई, इसलिए मैं लेता रहता था। जब मैं छोटा था तब एक तांत्रिक से मंत्रित करवाकर राखी हाथ पर बंधवाई थी। जिस हाथ पर राखी बंधी हुई थी उस हाथ के एलर्जी होने लगी तो मैंने राखी खोलकर, घर में खूटी पर टांग दी। मेरी पत्नी इससे नाराज रहने लगी कि आपने देवी-देवता को छोड़ दिया, देवता रुष्ट - होने पर प्रकोप करेंगे। लेकिन मेरी अफीम छूटने के कारण गुरुदेव के प्रति अटूट आस्था हो गई।

  • दो-तीन दिन बाद ही मेरी परीक्षा की घड़ी थी। मेरे घर गाय ब्याही हुई थी 6-7 दिन की बछड़ी थी, उसने दूध चूंगना (दूध पीना) बंद कर दिया। जब दूसरे दिन घर गया, तो मेरी पत्नी के क्रोध का पारा सातवें आसमान पर था, उसने कहा कि आपने राखड़ी उतारी इसलिए देवता रूष्ट हो गए इसलिए बछड़ी नहीं चुंग रही है। मुझे गुरुदेव पर पूर्ण विश्वास था, मैं तो सुबह नाश्ता कर काम पर चला गया। जब शाम को आया तो फिर वही बछड़ी नहीं चुंगने की बात। मैंने कहा कि गुरुदेव सम्भालेंगे। और मैं दूसरे दिन भी काम पर निगल गया। जब तीसरे दिन घर गया, तो पत्नी सख्त नाराज, उसने कहा कि आप अपना घर सम्भालो, बछड़ी बीमार है और आप तो कोई ध्यान देते नहीं हो। मैं आपके गुरुजी की फोटो को जला दूंगी। मैंने गुरुदेव का ध्यान कर, प्रार्थना की और बछड़ी के सिर पर हाथ फेरा तो बछड़ी दौड़कर गाय के पास चली गई, और दूध पीने लगी, मुझे तो गुरुदेव पर पूर्ण भरोसा था, घर वाली ने गाय की तरफ देखा तक नहीं। हम सभी सो गए। सुबह होने पर मैंने गाय दुहने को कहा, मेरी पत्नी जब गाय दुहने गई और उसने बछड़ी को दूध पीते देखा तो उसको आश्चर्य हुआ और मुझे आकर कहा कि बछड़ी दूध पी रही है, मैंने कहा कि हम पर गुरुदेव की असीम कृपा है-बस हमें धैर्य और विश्वास रखना होगा।

  • फिर मैंने गुरुदेव से प्रार्थना की कि एक गाय और ब्याएगी लेकिन उसका एक थन सुखा हुआ है, उसमें दूध नहीं आता है, जब गाय ब्याही, दूध दुहा तो चारों ही थनों में बराबर दूध आ रहा था। इससे मेरी पत्नी का विश्वास भी गुरुदेव के प्रति बढ़ने लगा। इस प्रकार छोटे से लेकर बड़े कार्य तक गुरुदेव से की गई प्रार्थना फलीभूत होती गई और हो रही है।

  • इन घटनाओं के बाद देवताओं व भूत-पलीतों से लफड़ा छूट गया। मेरे दिल में असीम शांति हुई। मुझे लगा कि मेरा कोई दूसरा जन्म हुआ है। अब जीवन का हर कार्य बड़ी सुगमता से होता है। नशों से घृणा हो गई। इन बहुत सारी घटनाओं तक मैं केवल मात्र गुरुदेव की फोटो से ध्यान करता था। सदगुरुदेव की तस्वीर ने मेरा जीवन बदल दिया। चाय व जर्दे का नशा रह गया था तो मैंने गुरुदेव से दीक्षा लेने का विचार किया।

  • फिर 24 अप्रेल 2008 को बीकानेर जाकर गुरुदेव से दीक्षा ले ली। गुरुदेव से करुण प्रार्थना की कि हे गुरुदेव! मेरे चाय व जर्दा छूट जाए। फिर हम बीकानेर से वापस अपने गाँव के लिए रवाना हुए। बीच रास्ते में याद आया कि - जर्दा खा लूं। फिर मैंने जर्दा मुँह में डाला, तो मेरे जी में बैचेनी होने लगी। जर्दा थूकना पड़ा। उस दिन के बाद मेरे जीवन में गरुदेव का ध्यान और अन्न के नशे के सिवाय जीवन को बर्बाद करने वाले सारे नशे छूट गए।

  • फिर मैंने गुरुदेव की तस्वीर से अन्य लोगों को ध्यान कराया तो उनको भी फायदा हुआ। कलियुग में गुरुदेव, साक्षात् ईश्वरीय शक्ति है, जो इनके चरण में झुक जाएगा वह पार हो जाएगा। गुरुदेव से दीक्षा लेने के बाद मेरे सामने कैसी भी कठिनाई आई हो, वह सरल हुई है। असाध्य, साध्य हो जाता है, अनहोनी, होनी में बदल जाती है।

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