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मंगलाराम द्विवेदी

मृत्यु-भय से मुक्ति (महाकाल के दर्शन)

पता

मंगलाराम द्विवेदी गांव-बालेसर सत्ता, तहसील- शेरगढ़, जिला- जोधपुर

मैं मंगलाराम शर्मा, बालेसर से हूँ। मुझे 9 जुलाई 1992 को बीकानेर में पूज्य गुरुदेव का पावन सानिध्य व मंत्र-दीक्षा प्राप्त करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। दीक्षा के बाद अजीबो-गरीब दिव्य अनुभूतियां हुईं, जिनका शब्दों में वर्णन करना मेरे लिये असंभव है। परन्तु उनमें से प्रमुख घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा जो सदैव के लिए मेरे मानस पटल पर अमिट हो गई है।

  • एक दिन ध्यान के पश्चात मुझे गहरी नींद आ गई। नींद में मुझे लगा कि मेरा ध्यान लग रहा है। शरीर कसने लगा और अन्दर जोरदार आवाज हुई कि तुझे महाकाल के पास ले जा रहा हूँ। मुझे मृत्यु से अत्यन्त भय लगता था। मृत्यु का नाम सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते थे। मैं किसी की मृत्यु तक देखना नहीं चाहता था। यह सुनकर मैं घबरा गया। कुछ देर बाद मेरे शरीर से एक सूक्ष्म शरीर निकलकर आकाश के घनीभूत अंधेरे में विचरण करने लगा।

  • उस भयभीत अवस्था में मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे पीछे-पीछे गुरुदेव आ रहे थे। इससे मैं थोड़ा मजबूत हुआ। आगे जाकर एक भयानक असंख्य जटा-जुट व दाढ़ी वाले महाकाल के दर्शन हुए। परन्तु वह अत्यन्त भयभीत महाकाल रूप परम पूज्य गुरुदेव के रूप में परिवर्तित हो गया। उस परम ऐश्वर्य युक्त दिव्य रूप के अद्भुत दर्शन से मेरा मृत्यु से सदा-सदा के लिये भय दूर हो गया है।

मुझे मृत्यु से अत्यन्त भय लगता था। मृत्यु का नाम सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते थे। परन्तु ध्यानावस्था में गुरुदेव के परम ऐश्वर्य युक्त दिव्य रूप के अद्भुत दर्शन से मेरा मृत्युभय सदा-सदा के लिये दूर हो गया।
  • मेरे जीवन में एक और अजीब घटना घटी। इतिहास साक्षी है कि मीरा पर जहर का असर नहीं हुआ था। जब महाराणा ने जहर का प्याला दिया तो मीरा, भगवान् श्री कृष्ण के भरोसे पी गई, जहर अमृत में बदल गया, मीरा में पहले से ज्यादा भक्ति-भावना आ गई। ऐसी ही घटना मेरी माँ के साथ हुई। मेरे पिताजी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। वे बात बात पर मेरी माँ से कहते थे कि, ‘‘मैं तुझे मार दूंगा।’’ एक दिन वे बालेसर स्टेशन पर एक लोहे की चूड़ियां बनाने वाली दुकान पर गये, वहाँ से, चुपके से, लोहे का बुरादा उठाया, बाजार से कोई खाने की वस्तु खरीदी और उसमें मिला दिया। घर पर आकर मेरी माँ को दे दिया कि यह तेरे खाने के लिए लाया हूँ। जब माँ ने वह वस्तु बच्चों को देनी चाही तो मेरे पिताजी ने मना कर दिया कि यह तो केवल तेरे लिए ही लाया हूँ, बच्चों को कोई दूसरी वस्तु दे देंगे।

  • इस बात से मेरी माँ को सन्देह हो गया कि जरूर ही कोई जहर डाली हुई वस्तु है, लेकिन पतिदेव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो इसलिए मेरी माँ ने गुरुदेव की तस्वीर के आगे प्रार्थना की कि, हे मंगले के गुरुदेव, मैं तो कुछ जानती नहीं। आप मेरी रक्षा करना। उस समय मैं, मेरे घर में अकेला ही दीक्षित था। और मेरी माँ ने वह वस्तु खा ली, लेकिन शरीर में कोई बदलाव नहीं आया बल्कि पहले से कुछ ज्यादा स्फूर्ति आ गई। इस स्थिति को देखकर मेरे पिताजी और भी ज्यादा आग बबूला हो गए, वे मन में सोचने लगे कि लोहे के एक कण से भी आदमी मर जाता है और इसके तो कुछ नहीं हुआ।

  • कुछ दिन बाद में काँच को महीन पीस कर शक्कर के साथ - मिलाकर पिला दिया। मेरी माँ तो बिल्कुल स्वस्थ रहीं, बीमारी के कोई लक्षण तक नहीं। पिताजी के दिमाग को जबरदस्त झटका लगा कि क्या हो गया, यह मरती क्यों नहीं है!

  • लेकिन उन दो घटनाओं से मेरी माँ को गुरुदेव की तस्वीर पर पूरा भरोसा हो गया कि हो न हो यह एक बड़ी शक्ति है यह मेरा बाल भी बांका नहीं होने देगी। एक दिन मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि मैंने तेरी माँ को मारने के लिए लोहे व काँच का बुरादा दिया लेकिन यह मरी नहीं। तो मैंने कहा कि यह मेरे पूज्य सदगुरुदेव श्री रामलालजी सियाग साहब की कृपा है। यदि आप मेरे गुरुदेव से दीक्षा लेकर ध्यान करो तो आपका अफीम छूट जाएगा। तो मेरे पिताजी ने कहा कि पहले मैं दीक्षा नहीं लूँगा। पहले मेरे अफीम छुड़वा दे, । मैंने उनको ध्यान की विधि बताई, उन्होंने गुरुदेव का ध्यान करना शुरू कर दिया।

  • ६ या ७ दिन बाद मेरे पिताजी ने कहा कि मेरे कुछ गड़ बड़ हो गया है मैं अफीम लेता हूँ तो उल्टियाँ हो जाती है और नहीं लेता हूँ तो मन शांत रहता है, तो मैंने कहा कि गुरुदेव की कृपा से आपकी अफीम छूट गई। फिर उन्होंने दीक्षा ले ली। जबकि वह, दिन को अफीम मिलने पर ५-६ तोले (१ तोला-१० ग्राम) तक खा जाते थे। आज गुरुदेव कृपा से जीवन धन्य हो गया।

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