Image मोहन सिंह

मोहन सिंह

समर्थ गुरु से मिलन

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मोहन सिंह इन्दा बालोतरा (बाड़मेर)

भारतीय संस्कृति में पूजा एक पूर्वाभ्यास है। इस रिहर्सल में तीन तरीके से तैयारियाँ बताई गई हैं कायिक, वाचिक, और मानसिक पूजा। जिस पूजा में पूरी तरह से शरीर सक्रिय रहता है उसे कायिक पूजा कहते हैं। बोलकर पूजा की जाती है तो वह वाचिक हो जाएगी। पूजा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पद्धति है- मानसिक। मानसिक पूजा सबसे सरल है।

  • सर्वप्रथम परम पूज्य सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग एवं दादा गुरुदेव श्रीगंगाईनाथजी को नमन्। सन् 2010 में गुरु पूर्णिमा को पहली बार गुरुदेव के चरण स्पर्श के लिए आश्रम गया। वहाँ जाकर देखा तो वहाँ का नजारा बड़ा ही अद्भुत और आनंदमय था। चारों तरफ भीड़ ही भीड़ थी। गुरुदेव के चरण स्पर्श के लिए बड़ी-बड़ी पंक्तियाँ में साधक खड़े थे। मैं भी पंक्ति में खड़ा हो गया। गर्मी का मौसम था, गर्मी के कारण शरीर की हालत खराब होने लगी। तीन घंटे पंक्ति में खड़ा रहने से शरीर जवाब देने लगा, चक्कर आने लगे, बीच में कई बार गुस्सा आता था। यह लाईन कब खत्म होगी और मेरा नम्बर कब आएगा? एक बार सोचा गुरुदेव के दर्शन तो हो गये है लेकिन चरण स्पर्श नहीं हुए है इसलिए लाईन में खड़ा रहना पड़ा और अपनी बारी का इन्तजार करने लगा।

मेरी बारी आ ही गई। जैसे ही मैंने गुरुदेव के चरण स्पर्श किये उसी समय मेरे शरीर से थकान मिट गई ऐसे लगा जैसे सूखे रेगिस्तान में नदी आ गई हो! जो रेगिस्तान बरसों से प्सासा था, आज वह पानी से लबालब हो गया। शरीर में बिजली चलने लगी। जहाँ बरसों से अन्धेरा था, आज वहाँ प्रकाश हो गया। जिस लक्ष्य के लिए मैं आराधना करता रहा वह पल भर के लिये भूल गया। गुरुदेव के चरण स्पर्श ने सब कुछ भुला दिया। इस कलियुग में - सतयुग, त्रेतायुग व द्वापर युग का आभास करा दिया। वाह करुणानिधि आपकी माया का कोई भेद नहीं पाया। मुझ जैसे तुच्छ व्यक्ति के लिए यह बड़े गर्व की बात है कि उस जगत् स्रष्टा ने मुझे शिष्यत्व प्रदान किया। आज तो स्वर्ग का आनंद भी फीका पड़ गया।
  • आज सम्पूर्ण पृथ्वी पर लोग भगवान् की तलाश कर रहे हैं और भगवान् हमारे सामने हैं-गुरु सियाग के रूप में। आपका रास्ता और आपकी आराधना सरल है। गुरु और शिष्य के रिश्ते में स्थितियों के अनुसार भाव नहीं बदलने चाहिए। यह रिश्ता भरोसे पर टिका है।

  • गुरु शक्ति के जगदामुखी प्रवाह को पलटकर अंतर्मुखी कर देते हैं। जीव में शक्ति का चक्र उल्टा घूमने लगता है। संचित संस्कार क्षीण होकर चित्त निर्मल होने लगता है। अंतर का भ्रम विलीन अर्थात् अविद्या का आवरण उतरने लगता है। गुरुदेव के आशीर्वाद तथा कृपा-शक्ति से 'जीव' का बंधन टूटने लगता है। उसे अंधकार और भ्रम से मुक्ति मिल जाती है तथा जन्म-मरण का चक्र टूट जाता है। गुरुदेव की आराधना से ही मानव जाति का उद्धार हो सकता है।

  • गुरुदेव से जुड़ने के बाद ध्यान में, सपने में, खुली आँखों में व जीवन की कई घटनाओं में खूब आनंद मिला। एक बार सपने में गुरुदेव ने मेरे सिर पर जो हाथ रखा था, उस हाथ का वजन मुझे कई महीनों तक महसूस हुआ। गुरुदेव का मुख्य मिशन और उद्देश्य है-वैदिक दर्शन को विश्व दर्शन बनना।

  • इस यज्ञ में आहूति के लिए, उनके बताए पथ पर चलकर, एक सच्चा साधक और शिष्य बनूं, मेरे जीवन की सारी विकृतियाँ दूर हों, ऐसी सदगुरुदेव भगवान् से बारंबार प्रार्थना है। आराधना काल में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। श्रद्धा की डोर उनकी चरण में लगी रहे। ऐसे परम दयालु सदगुरुदेव को बारंबार प्रणाम।

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