Image देवेन्द्र कुमार राय

देवेन्द्र कुमार राय

समर्थ गुरु की प्राप्ति

पता

देवेन्द्र कुमार राय उम्र-56 वर्ष गांव-सोनहरियाँ पोस्ट-भुवालचक जिला-गाजीपुर (उ.प्र)

सर्वप्रथम परम पूज्य समर्थ सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग व दादा गुरुदेव बाबा श्री गंगाईनाथ जी योगी (ब्रह्मलीन) के श्री चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम। मैं देवेन्द्र कुमार राय, उम्र 56 वर्ष, ग्राम सोनहरियाँ, पोस्ट-भूवालचक, जिला- गाजीपुर, उ.प्र. का रहने वाला हूँ। मेरी बचपन से ही ईश्वर-प्राप्ति की तीव्र इच्छा थी, इसके लिए मैं समर्थ गुरु की तलाश करने लगा। 17 वर्ष की उम्र में मेरा विवाह भी हो गया लेकिन ईश्वर प्राप्ति की तीव्र इच्छा के कारण मैं कई आश्रमों में जाता रहता था।

  • सर्वप्रथम गोरखपुर गोरखनाथजी के मंदिर गया तो वहाँ के महंत अवैद्यनाथ जी ने मुझे कहा कि आपको पूर्ण संन्यास के साथ भिक्षाटन भी करना पड़ेगा लेकिन भिक्षा माँगने का कार्य मुझे स्वीकार नहीं था। अतः मैं वहाँ से अयोध्या में नित्य गोपालदास जी महाराज जी के आश्रम गया, उन्होंने मुझे गृहस्थ में रहते हुये साधना-भजन करने के लिए कहा। मैं वहाँ पर साधना-भजन करने के साथ-साथ परिवार के पालन-पोषण हेतु भवन निर्माण विभाग व जलदाय विभाग में भी नौकरी करने लगा, इस प्रकार साधन-भजन करते हुए करीब तीन वर्ष बीत गये लेकिन मुझे कोई आध्यात्मिक अनुभूति व आत्म संतुष्टि प्राप्त नहीं हई।

  • इसके पश्चात मैं वापस घर आ गया। कुछ वर्ष घर पर रहने के पश्चात मैं काशी में स्वामी राम नरेशाचार्यजी के आश्रम गया। वहाँ मुझे मंत्र दीक्षा दी तथा मेरा नामकरण भी हुआ और मुझे रामदास कहा जाने लगा, कुछ दिन आश्रम में रहने के पश्चात मुझे आश्रम की गतिविधियों की जानकारी हुई तो अनुभव किया कि आश्रम में बेवजह की राजनीति होती है और सीधे-सच्चे लोगों की हमेशा उपेक्षा व अपमान होता है तो मैं वहाँ भी 2-3 - वर्ष रहकर पाया कि यहाँ भी कोई सच्चाई नहीं है। इसके पश्चात मैं विंगम योग से जुड़ा। वहाँ कि विधियों का भी काफी अभ्यास किया लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला। इन सबके बाद भी मैंने हार नहीं मानी और लगातार समर्थ सदगुरुदेव की तलाश में रहता।

वर्षों तक भटकने के पश्चात् आखिर मुझे मेरे समर्थ सदगुरुदेव मिले। अब मैं नियमित ध्यान व नाम जाप करता हूँ, जिससे मुझे पूरे शरीर में हल्का योग होता है और आनंद की असीम अनुभूति होती है। अब मेरा संकल्प है कि जब मुझे गुरुदेव ने ठीक कर दिया है तो मैं आजीवन सदगुरुदेव की सेवा में रहूँगा, जीवन भर इस दर्शन का प्रचार-प्रसार करूँगा।
  • इसी दौरान मैं स्वयं को कल्कि अवतार कहने वाले बाबा ज्ञानेश्वर स्वामी सदानंद परमहंस के आश्रम गया। वहाँ पर साधकों से खेतों में व निर्माण कार्यो में कई घण्टों तक कठिन परिश्रम कराया जाता था। गलती होने पर कोड़े व डण्डे से पिटाई होती थी तथा ये भी कहा जाता कि आश्रम के अलावा बाहर का खाना-खाने से आपकी मृत्यु भी हो सकती है-ऐसा भय भी दिखाया जाता था। और जो एक बार आश्रम में आ गया, उसको वहाँ से बड़ी मुश्किल से जाने दिया जाता था, जो जाने की कोशिश करता उसकी भयंकर पिटाई भी की जाती थी। एक दिन मुझे भी अकारण बिना किसी गलती के डण्डे से पीटा गया तो मैंने निश्चय किया कि कैसे-भी हो, यहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना है। इसके पश्चात मैं हमेशा वहाँ से भागने की फिराक में ही रहता था और एक दिन सवेरे भौर में उनके हरिद्वार आश्रम से भागने में सफल रहा और सड़क पर पकड़े जाने के भय से केवल रेल-पटरी से करीब 14-15 किमी दूर तक पैदल ही चलता रहा।

  • इसके पश्चात काशी होते हुए डरा-सहमा घर पहुँचा और चैन की सांस ली। घर वालों को बताया कि मैं यहाँ का खाना नहीं खा सकता, मेरी मृत्यु हो जाएगी ऐसा भयंकर भय उन्होंने मेरे मन में बिठा दिया था। इस पर घर वालों ने कहा कि मुझे कुछ नहीं होगा तो मैंने भोजन किया और ईश्वर कृपा से ऐसी दुःखदायी परिस्थिति से सकुशल बाहर निकला। कुछ समय पश्चात् पता चला कि खुद को कल्कि अवतार कहने वाले बाबा की किसी ने हत्या कर दी। यह जानकर मन में काफी निराशा हुई कि सब जगह बस भोले-भाले लोगों को भगवान् के नाम से लूटने का गोरख धंधा ही चल रहा है। ऐसे में कहीं भी सच्चाई की आशा करना केवल कल्पना मात्र लगने लगा।

  • इन सब घटनाओं के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और वापस सदगुरुदेव की तलाश में जुट गया और इस बार मैं अड़गड़ानंद जी के आश्रम पहुँचा चूंकि मेरी उम्र भी 50 के लगभग हो गयी और सिर के बाल भी सफेद हो गये तो आश्रम वालों ने कहा कि यहाँ केवल जवान-युवा लोगों को ही रहने दिया जाता है, बूढ़े लोगों का यहाँ कोई काम नहीं, बूढ़े लोग काम तो करेंगे नहीं और उनके बीमारी, दवाई व खाने का भी बेवजह काफी खर्चा आयेगा, मुझे समझते देर न लगी कि यहाँ भी मुझे कुछ नहीं मिलेगा। इसके पश्चात मैं घर पर रहकर ही भजन करता और हमेशा समर्थ गुरु की तलाश में ही रहता।

  • अब मेरी उम्र भी करीब 56 वर्ष की हो चुकी थी और पैरों में गठिया रोग हो गया तथा चलने-फिरने में भी काफी कष्ट होने लगा। अपने अतीत पर नजर डालता हूँ तो देखता हूँ कि मैनें 17 साल की उम्र से सदगुरुदेव की तलाश शुरु की लेकिन अभी तक मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हो नहीं सका और करीब 39 साल इसी तरह भटकते हुए, नकली गुरुओं के बहकावे और संघर्ष करते हुए बीत गये।

  • इसी क्रम में, इसी वर्ष अप्रैल-मई 2016 में सिंहस्थ कुंभ उज्जैन में गया तो वहाँ कुछ लोग सिद्धयोग के पर्चे बाँट रहे थे, उनमें से एक ने मुझे पर्चा दिया और सिद्धयोग के विषय में तथा इसके लाभ के विषय में बताया तथा कहा कि इस सिद्धयोग से आप का गठिया ठीक हो जायेगा, इसके बाद मैं वहाँ पर सिद्धयोग शिविर में पहुंचा। वहाँ पर मुझे सिद्धयोग दर्शन की जानकारी देकर ध्यान करवाया। इस समय तक इसे मैंने सामान्य तरीके से ही लिया। इस प्रकार मैं सिद्धयोग के पर्चे व कार्ड लेकर घर पहुंचा और इस विषय में अपने चाचा को बताया तो चाचाजी ने कहा कि एक बार कुछ दिन ध्यान करके देखो, यदि इससे तुम्हारा गठिया ठीक हो जाये तो तुम इनको ही अपना गुरु स्वीकार कर लेना, मैंने कहा कि ठीक है।

  • मैं इसे एक बार आजमा के देखता हूँ, इसके बाद करीब 15 दिन तक मैंने गुरुदेव की तस्वीर से सुबह-शाम ध्यान व नाम जप किया तो मैंने देखा कि मेरा गठिया का दर्द बिल्कुल कम हो गया और चलने-फिरने में भी अब कोई समस्या नहीं रही, ये बात मैंने अपने परिवार में सबको बताई, सभी को काफी आश्चर्य और खुशी हुई। जिन की कृपा से वो भी इतनी दूर बैठे, बिना मिले, बिना दवाई, उपचार या कर्मकांड किये केवल उनकी तस्वीर से ध्यान करने व नाम जाप करने से, मात्र 15 दिन में मेरा गठिया ठीक हो सकता है तो ऐसे समर्थ सदगुरुदेव के लिए कुछ भी असंभव नहीं है और इसके साथ ही मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि यही मेरे समर्थ सदगुरुदेव हैं जिनकी मुझे जीवन भर से तलाश थी और अब यही मुझे भवसागर से भी पार करेंगे।

  • इतने वर्षों तक भटकने के पश्चात् आखिर मुझे मेरे समर्थ सदगुरुदेव मिले। अब मैं नियमित ध्यान व नाम जाप करता हूँ, जिससे मुझे पूरे शरीर में हल्का योग होता है और आनंद की असीम अनुभूति होती है। अब मेरा संकल्प है कि जब मुझे गुरुदेव ने ठीक कर दिया है तो मैं आजीवन सदगुरुदेव की सेवा में रहूँगा, जीवन भर इस दर्शन का प्रचार-प्रसार करूँगा।

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