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विष्णु मालवअन्ता

मानसिक तनाव व अपेन्डिक्स से मुक्ति

पता

विष्णु मालवअन्ता, जिला- बारां (राज.)

पूज्य सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग एवं दादा गुरुदेव के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम। मैंने 8 जनवरी 2009 को कोटा के दशहरा मैदान में गुरुदेव से दीक्षा ली थी। दीक्षा से पूर्व मेरा जीवन नीरस सा हो गया था। मुझे मानसिक तनाव व सिरदर्द ने जकड़ रखा था। जिसके कारण मैं बहुत परेशान रहता था। चेहरे से मुस्कुराहट गायब सी हो गयी थी।

  • लेकिन गुरुदेव का ध्यान करने के बाद मुझे बहुत शांति महसूस हुई और कुछ समय बाद मानसिक परेशानी से मुझे पूर्ण मुक्ति मिल गई। अब मैं हर समय बहुत आनंदित रहता हूँ।

ध्यान के दौरान गर्दन में यौगिक क्रियाएँ होती हैं। सिर में तेज-तेज स्ट्रोक लगते हैं, जिससे टक-टक की आवाज सी आती है। शरीर में बहुत अधिक ऊर्जा महसूस होती है और बहुत आनन्द आता है।
  • आज से एक साल पहले मुझे पेट दर्द की शिकायत होने लग गयी थी। शाम को खाना खाने के बाद नाभि के पास हल्का दर्द होने लगता था तथा सुबह तक दर्द बढ़ जाता और फिर इंफेक्शन की वजह से पेट में सूजन सी आ जाती थी। पेट को हल्के से दबाने, चलने-फिरने व करवट लेने पर भी दर्द होने लगता था। जब पहली बार पेट दर्द हुआ तो मैंने डॉक्टर को दिखाकर इलाज लिया और 5 दिन में ठीक हो गया।

  • 10-15 दिन बाद वापस दर्द होने लगा लेकिन इस बार मैंने डॉक्टर को नहीं दिखाया और सघन नाम-जप शुरू कर दिया, जिससे मेरे पेट दर्द वाले हिस्से में यौगिक क्रियाएँ होने लगी, खिंचाव सा महसूस होने लगा और पेट के अंदर टिप-टिप बूंदे गिरने जैसा एहसास होता था। इस प्रकार 5 दिन में मेरा पेट-दर्द ठीक हो गया। यही पेट दर्द 10-15 दिन के अंतराल पर 5-6 बार हुआ लेकिन हर बार बिना दवाई लिये, केवल सघन नाम-जप व ध्यान के द्वारा ठीक हो गया। आज लगभग 6-7 महीने हो गये हैं, मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ।

  • दिव्य अनुभूति :- एक दिन मैं शाम के वक्त लेटे-लेटे ही नाम-जप कर रहा था। करीब 30-40 मिनट बाद मेरे सिर में कोई हिस्सा ऊपर ऊठा और मैं अचानक ध्यान की गहराई में जाने लगा। बाहर की आवाजें आना बंद हो गयी और संजीवनी मंत्र बहुत तीव्र गति से स्वतः ही जपा जाने लगा। हृदय की धड़कन तेज हो गई थी। एक मिनट के अंदर ही मैंने डर के मारे आँखें खोल दी क्योंकि मैं उस दिव्य दृश्य को सहन नहीं कर पा रहा था।

  • गुरुदेव की कृपा से मुझे समाधि जैसी स्थिति का अनुभव हुआ और मुझे विश्वास हुआ कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, हमारे शरीर के अंदर ही है। उस अनुभूति के बाद मैंने बहुत बार उसी तरह का प्रयास किया लेकिन उस अनुभूति को दुबारा अनुभव करने में सफल नहीं हुआ। शायद मेरा शरीर अभी उसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। गुरुदेव आपकी कृपा दृष्टि मुझ पर हमेशा बनाये रखना। गुरुदेव के पावन श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।

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